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संभल-चंदौसी में मिली गुप्त सुरंग और बावड़ी कर रही हैरान, जानिए 1857 तक क्यों जुड़ रहे हैं तार
संभल-चंदौसी में मिली गुप्त सुरंग और बावड़ी कर रही हैरान, जानिए 1857 तक क्यों जुड़ रहे हैं तार
संभल-चंदौसी में मिली गुप्त सुरंग और बावड़ी कर रही हैरान, जानिए 1857 तक क्यों जुड़ रहे हैं तार
संभल के जिला मजिस्ट्रेट राजेंद्र पेंसिया ने कहा कि इस स्थल पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) से सर्वेक्षण कराने की संभावना पर विचार किया जा रहा है, और यदि आवश्यक हुआ तो एएसआई से अनुरोध किया जा सकता है.
उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के संभल में एक के बाद एक खुलासे हो रहे हैं. शाही जामा मस्जिद के सर्वे के दौरान हुई हिंसा के बाद प्रशासन की तरफ से एक के बाद एक खुलासे हो रहे हैं. प्रशासन ने हाल ही में एक प्राचीन शिव मंदिर की खोज की, जो कथित तौर पर 1978 से बंद था. इस बीच चंदौसी में शनिवार को राजस्व विभाग ने एक जमीन की खुदाई की तो उसके नीचे एक विशालकाय बावड़ी मिली है.
संभल के जिला मजिस्ट्रेट राजेंद्र पेंसिया ने कहा कि इस स्थल पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) से सर्वेक्षण कराने की संभावना पर विचार किया जा रहा है, और यदि आवश्यक हुआ तो एएसआई से अनुरोध किया जा सकता है. मीडिया से बात करते हुए पेंसिया ने कहा, “यह स्थल पहले तालाब के रूप में पंजीकृत था. बावड़ी की ऊपरी मंजिल ईंटों से बनी है, जबकि दूसरी और तीसरी मंजिल संगमरमर की है। उन्होंने कहा कि संरचना में चार कमरे और एक बावड़ी भी है. ”
सवा सौ से डेढ़ सौ वर्ष पुरानी है बावड़ी: जिलाधिकारी
जिलाधिकारी राजेंद्र पेसियां ने बताया कि खतौनी के अंदर पॉइंट 040 अर्थात 400 वर्ग मीटर क्षेत्र है. वह बावली तालाब के रूप में यहां दर्ज है. स्थानीय लोग बताते है कि बिलारी के राजा के नाना के समय बावड़ी बनी थी। इसका सेकंड और थर्ड फ्लोर मार्बल से बना है. ऊपर का तल ईटों से बना हुआ है. इसमें एक कूप भी है और लगभग चार कक्ष भी बने हुए हैं. धीरे धीरे मिट्टी निकाल रहे हैं ताकि इसकी संरचना को किसी भी प्रकार की कोई हानि न हो. वर्तमान में इसका 210 वर्ग मीटर एरिया ही लग रहा है, शेष क्षेत्रफल कब्जे में है. कम से कम सवा सौ से डेढ़ सौ वर्ष पुरानी बावड़ी हो सकती है.
सनातन सेवक संघ के राज्य प्रचार प्रमुख कौशल किशोर ने संभल जिला प्रशासन को इलाके में एक शाही बावड़ी के अस्तित्व के बारे में बताया था. जिसके बाद खुदाई शुरू की गई थी.
1857 से जुड़े हैं तार?
बावड़ी को लेकर दावे किए जा रहे हैं कि इसका निर्माण 1857 में हुआ था. इसके अंदर 12 कमरे, एक कुआं वो सुरंग है.अब तक के खुदाई में 4 कमरे स्पष्ट दिखाई दे रहे हैं. 2 जेसीबी की मदद से खुदाई का कार्य जारी है. हालांकि ढांचे को कोई नुकसान न हो इसके लिए बेहद सावधानी बरती जा रही है.
- संभल, उत्तर प्रदेश, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध क्षेत्र है, जिसमें कई प्राचीन धरोहरें मौजूद हैं.
- बावड़ी न केवल जल संरक्षण के लिए उपयोगी थी, बल्कि इसे एक धार्मिक और सामाजिक स्थल के तौर पर भी इसकी पहचान रही होगी.
- समय के साथ बावड़ी का रखरखाव कम हो गया और यह क्षतिग्रस्त स्थिति में पहुंच गई, बाद में इस पर अतिक्रमण कर लिया गया.
बावड़ी क्या होता है?
बावड़ी (जिसे बाउरी, बावली, या वाव भी कहा जाता है) एक पारंपरिक जल संरचना है, जिसे प्राचीन भारत में पानी के संरक्षण और भंडारण के लिए बनाया जाता था. यह सीढ़ीनुमा कुएं की तरह होती है, जिसमें लोग सीढ़ियों के जरिए पानी तक पहुंच सकते हैं. यह भारतीय स्थापत्य और जल प्रबंधन प्रणाली का एक उत्कृष्ट उदाहरण है.बारिश के पानी को संग्रहित करने के लिए भी इनका उपयोग होता था.बावड़ी पानी को सहेजने का एक कुशल तरीका था, विशेष रूप से उन क्षेत्रों में जहां पानी की कमी थी. यह केवल जल भंडारण का स्थान नहीं, बल्कि एक सामाजिक और धार्मिक केंद्र भी हुआ करता था. गर्मियों में यह जगह ठंडक का अहसास देती थी.समय के साथ बावड़ियों का उपयोग कम हो गया, लेकिन आज ये ऐतिहासिक धरोहर और पर्यटन स्थल के रूप में प्रसिद्ध है. संभल के चारों कोनों पर श्मशान है. जिन पर अतिक्रमण हो चुका है. इनका भी काया कल्प किया जाएगा. जो मंदिर संभल में हैं उन सबका विकास करने की योजना है. संभल में हिंदू खेड़ा नाम से एक कॉलोनी है. पहले यहां हिंदू परिवार रहा करते थे. पर आज यहां सिर्फ़ मुस्लिम समाज के लोग रहते हैं. यही हाल दीपा सराय कॉलोनी का है. कल मुरादाबाद के कमिश्नर ने मंगल के सरकारी वकीलों की बैठक बुलाई हैं. इसमें 1978 के दंगे से जुड़ी फाइल मंगाई गई हैं.
संभल-चंदौसी में मिली गुप्त सुरंग और बावड़ी कर रही हैरान, जानिए 1857 तक क्यों जुड़ रहे हैं तार
संभल के जिला मजिस्ट्रेट राजेंद्र पेंसिया ने कहा कि इस स्थल पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) से सर्वेक्षण कराने की संभावना पर विचार किया जा रहा है, और यदि आवश्यक हुआ तो एएसआई से अनुरोध किया जा सकता है.
उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के संभल में एक के बाद एक खुलासे हो रहे हैं. शाही जामा मस्जिद के सर्वे के दौरान हुई हिंसा के बाद प्रशासन की तरफ से एक के बाद एक खुलासे हो रहे हैं. प्रशासन ने हाल ही में एक प्राचीन शिव मंदिर की खोज की, जो कथित तौर पर 1978 से बंद था. इस बीच चंदौसी में शनिवार को राजस्व विभाग ने एक जमीन की खुदाई की तो उसके नीचे एक विशालकाय बावड़ी मिली है.
संभल के जिला मजिस्ट्रेट राजेंद्र पेंसिया ने कहा कि इस स्थल पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) से सर्वेक्षण कराने की संभावना पर विचार किया जा रहा है, और यदि आवश्यक हुआ तो एएसआई से अनुरोध किया जा सकता है. मीडिया से बात करते हुए पेंसिया ने कहा, “यह स्थल पहले तालाब के रूप में पंजीकृत था. बावड़ी की ऊपरी मंजिल ईंटों से बनी है, जबकि दूसरी और तीसरी मंजिल संगमरमर की है। उन्होंने कहा कि संरचना में चार कमरे और एक बावड़ी भी है. ”
सवा सौ से डेढ़ सौ वर्ष पुरानी है बावड़ी: जिलाधिकारी
जिलाधिकारी राजेंद्र पेसियां ने बताया कि खतौनी के अंदर पॉइंट 040 अर्थात 400 वर्ग मीटर क्षेत्र है. वह बावली तालाब के रूप में यहां दर्ज है. स्थानीय लोग बताते है कि बिलारी के राजा के नाना के समय बावड़ी बनी थी। इसका सेकंड और थर्ड फ्लोर मार्बल से बना है. ऊपर का तल ईटों से बना हुआ है. इसमें एक कूप भी है और लगभग चार कक्ष भी बने हुए हैं. धीरे धीरे मिट्टी निकाल रहे हैं ताकि इसकी संरचना को किसी भी प्रकार की कोई हानि न हो. वर्तमान में इसका 210 वर्ग मीटर एरिया ही लग रहा है, शेष क्षेत्रफल कब्जे में है. कम से कम सवा सौ से डेढ़ सौ वर्ष पुरानी बावड़ी हो सकती है.
सनातन सेवक संघ के राज्य प्रचार प्रमुख कौशल किशोर ने संभल जिला प्रशासन को इलाके में एक शाही बावड़ी के अस्तित्व के बारे में बताया था. जिसके बाद खुदाई शुरू की गई थी.
1857 से जुड़े हैं तार?
बावड़ी को लेकर दावे किए जा रहे हैं कि इसका निर्माण 1857 में हुआ था. इसके अंदर 12 कमरे, एक कुआं वो सुरंग है.अब तक के खुदाई में 4 कमरे स्पष्ट दिखाई दे रहे हैं. 2 जेसीबी की मदद से खुदाई का कार्य जारी है. हालांकि ढांचे को कोई नुकसान न हो इसके लिए बेहद सावधानी बरती जा रही है.
- संभल, उत्तर प्रदेश, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध क्षेत्र है, जिसमें कई प्राचीन धरोहरें मौजूद हैं.
- बावड़ी न केवल जल संरक्षण के लिए उपयोगी थी, बल्कि इसे एक धार्मिक और सामाजिक स्थल के तौर पर भी इसकी पहचान रही होगी.
- समय के साथ बावड़ी का रखरखाव कम हो गया और यह क्षतिग्रस्त स्थिति में पहुंच गई, बाद में इस पर अतिक्रमण कर लिया गया.
बावड़ी क्या होता है?
बावड़ी (जिसे बाउरी, बावली, या वाव भी कहा जाता है) एक पारंपरिक जल संरचना है, जिसे प्राचीन भारत में पानी के संरक्षण और भंडारण के लिए बनाया जाता था. यह सीढ़ीनुमा कुएं की तरह होती है, जिसमें लोग सीढ़ियों के जरिए पानी तक पहुंच सकते हैं. यह भारतीय स्थापत्य और जल प्रबंधन प्रणाली का एक उत्कृष्ट उदाहरण है.बारिश के पानी को संग्रहित करने के लिए भी इनका उपयोग होता था.बावड़ी पानी को सहेजने का एक कुशल तरीका था, विशेष रूप से उन क्षेत्रों में जहां पानी की कमी थी. यह केवल जल भंडारण का स्थान नहीं, बल्कि एक सामाजिक और धार्मिक केंद्र भी हुआ करता था. गर्मियों में यह जगह ठंडक का अहसास देती थी.समय के साथ बावड़ियों का उपयोग कम हो गया, लेकिन आज ये ऐतिहासिक धरोहर और पर्यटन स्थल के रूप में प्रसिद्ध है. संभल के चारों कोनों पर श्मशान है. जिन पर अतिक्रमण हो चुका है. इनका भी काया कल्प किया जाएगा. जो मंदिर संभल में हैं उन सबका विकास करने की योजना है. संभल में हिंदू खेड़ा नाम से एक कॉलोनी है. पहले यहां हिंदू परिवार रहा करते थे. पर आज यहां सिर्फ़ मुस्लिम समाज के लोग रहते हैं. यही हाल दीपा सराय कॉलोनी का है. कल मुरादाबाद के कमिश्नर ने मंगल के सरकारी वकीलों की बैठक बुलाई हैं. इसमें 1978 के दंगे से जुड़ी फाइल मंगाई गई हैं.