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'चीन को देना पड़ रहा 245% तक टैरिफ,' व्हाइट हाउस के फैक्ट शीट में अमेरिका ने बताई यह वजह..

अमेरिका ने कहा है कि चीन को "अपनी जवाबी कार्रवाई के कारण" अब अमेरिका में माल के आयात पर 245 प्रतिशत टैरिफ का सामना करना पड़ रहा है. चीन और अमेरिका के बीच टैरिफ वॉर अब तेज होता जा रहा है. अमेरिका ने एक बार फिर चीन पर दबाव बढ़ाया है. अमेरिका ने कहा है कि चीन को "अपनी जवाबी कार्रवाई के कारण" अब अमेरिका में माल के आयात पर 245 प्रतिशत टैरिफ का सामना करना पड़ रहा है. यह बात अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के ऑफिस, व्हाइट हाउस ने अपने फैक्ट शीट में कही है. व्हाइट हाउस ने अपने बयान में कहा है कि लिबरेशन डे पर, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने उन सभी देशों पर 10 प्रतिशत टैरिफ लगाया जो अमेरिका पर हाई टैरिफ लगाते हैं. टैरिफ को फिर रोक दिया गया क्योंकि 75 से अधिक देश नए व्यापार डील पर बातचीत करने के लिए अमेरिका के पास पहुंचे. "इन चर्चाओं के बीच इंडिविजुअल (देशों पर व्यक्तिगत) टैरिफ को फिलहाल रोक दिया गया है, चीन को छोड़कर, जिसने जवाबी कार्रवाई की. चीन को अब अपनी जवाबी कार्रवाई के कारण अमेरिका में आयात पर 245% तक के टैरिफ का सामना करना पड़ रहा है." अमेरिका के साथ व्यापार युद्ध लड़ने से नहीं डरते- चीन चीन ने बुधवार को चेतावनी दी कि वह अमेरिका के साथ व्यापार युद्ध लड़ने से "डरता नहीं" है. इससे पहले अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने यह कहा था कि बातचीत की मेज पर आना बीजिंग पर निर्भर करता है. प्रेस सेक्रेटरी कैरोलिन लेविट द्वारा एक ब्रीफिंग में पढ़े गए एक बयान के अनुसार, मंगलवार को अमेरिकी राष्ट्रपति ने कहा, "गेंद चीन के पाले में है. चीन को हमारे साथ एक समझौता करने की जरूरत है." जवाब में चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता लिन जियान ने कहा, "अगर अमेरिका वास्तव में बातचीत के माध्यम से इस मुद्दे को हल करना चाहता है, तो उसे अत्यधिक दबाव डालना बंद करना चाहिए, धमकी देना और ब्लैकमेल करना बंद करना चाहिए और समानता, सम्मान और पारस्परिक लाभ के आधार पर चीन से बात करनी चाहिए."  
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औरंगजेब की कब्र का विवाद पहुंचा UN, मुगल बादशाह के वंशज ने पत्र लिखकर मांगी सुरक्षा

औरंगजेब की कब्र का विवाद संयुक्त राष्ट्र तक पहुंच गया है। खुद को अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर का वंशज बताने वाले शख्स ने इस मामले में यूनाइटेड नेशंस को पत्र लिखा है। अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर के वंशज होने का दावा करने वाले एक शख्स ने संयुक्त राष्ट्र को पत्र लिखा है। यूनाइटेड नेशंस को लिखे पत्र में शख्स ने औरंगजेब की कब्र का जिक्र करते हुए उसकी सुरक्षा मांगी है। औरंगजेब की कब्र से जुड़ा विवाद हाल के दिनों में काफी चर्चा में रहा है। पिछले महीने नागपुर में एक रैली के दौरान हिंसा भड़क उठी थी, जिसमें औरंगजेब की कब्र हटाने की मांग की गई थी। औरंगजेब की कब्र छत्रपति संभाजीनगर जिले के खुल्दाबाद में स्थित है। छत्रपति संभाजीनगर जिला पहले औरंगाबाद के नाम से जाना जाता था।  कौन हैं याकूब हबीबुद्दीन तुसी  याकूब हबीबुद्दीन तुसी का दावा है कि वो मुगलों के वंशज हैं। तुसी ने ही संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस को पत्र लिखा है। तुसी ने अपने पत्र में दावा है कि वो उस वक्फ संपत्ति के मुतवल्ली (देखभालकर्ता) हैं, जहां औरंगजेब की कब्र है। उन्होंने कहा कि कब्र को 'राष्ट्रीय महत्व का स्मारक' घोषित किया गया है और यह प्राचीन स्मारक और पुरातत्व स्थल और अवशेष अधिनियम, 1958 के तहत संरक्षित है।  तुसी ने अंतरराष्ट्रीय कानूनों का दिया हवाला बहादुर शाह जफर के वंशज ने अंतरराष्ट्रीय कानूनों का हवाला देते हुए इसकी सुरक्षा के लिए सुरक्षाकर्मियों की तैनाती की मांग की है। उन्होंने पत्र में कहा, "फिल्मों, मीडिया आउटलेट और सोशल प्लेटफॉर्म के माध्यम से ऐतिहासिक तथ्यों को गलत तरीके से पेश करने के कारण लोगों की भावनाओं के साथ खिलवाड़ किया गया है, जिसकी वजह से अनुचित विरोध हो रहा है।"  'अंतरराष्ट्रीय कानूनों का होगा उल्लंघन' याकूब हबीबुद्दीन तुसी ने पत्र में कहा है, "ऐसे स्मारकों का विनाश, उपेक्षा या गैरकानूनी परिवर्तन अंतरराष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन होगा।" पत्र में भारत की ओर से विश्व सांस्कृतिक और प्राकृतिक विरासत के संरक्षण से संबंधित यूनेस्को कन्वेंशन, 1972 पर हस्ताक्षर करने का हवाला भी दिया गया है। 'औरंगजेब की कब्र को मिले सुरक्षा' तुसी ने संयुक्त राष्ट्र महासचिव के कार्यालय से मामले का संज्ञान लेने का आग्रह किया है। उन्होंने गुहार लगाई है कि संयुक्त राष्ट्र महासचिव का कार्यालय केंद्र सरकार और एएसआई को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दे कि औरंगजेब की कब्र को "राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय कानूनों के अनुसार पूर्ण कानूनी सुरक्षा, सुरक्षा और संरक्षण" प्रदान किया जाए।  
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चाबहार, तेल और शांति-शांति.. अमेरिका और ईरान के बीच न्यूक्लियर डील पर इन 3 वजहों से भारत की नजर...

अमेरिका और ईरान के बीच न्यूक्लियर डील को लेकर बातचीत जारी है. 2018 में खुद ऐसे ही एक डील से अमेरिका को बाहर निकालने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अपने दूसरे कार्यकाल में एक नई डील की कोशिश में हैं. अमेरिका के विशेष दूत स्टीव विटकॉफ ने साफ-साफ कहा है कि अगर तेहरान को वाशिंगटन के साथ कोई डील करनी है तो अपने परमाणु संवर्धन कार्यक्रम यानी न्यूक्लियर एनरिचमेंट प्रोग्राम को रोकना और समाप्त करना होगा. ईरान को अपनी यूरेनियम को एनरिच करने से जुड़ीं गतिविधियों पर रोक लगानी होगी और बदले में उसे अमेरिकी प्रतिबंधों से राहत मिलेगी. सवाल है कि इन दो देशों की वार्ता पर भारत क्यों नजर रख रहा होगा, अगर ईरान पर अमेरिका अपने आर्थिक प्रतिबंधों को हटा लेता है तो भारत को क्या फायदा होगा.  चाबहार बंदरगाह वाला फैक्टर भारत के लिए पाकिस्तान को बाईपास करके सेंट्रल एशिया तक पहुंचने के लिए चाबहार प्रोजेक्ट बहुत अहम है. ईरान में बने चाबहार बंदरगाह को मिलकर बनाने की कल्पना तो 2003 में ही की गई थी लेकिन यह प्रोजेक्ट इस वजह से सालों तक शुरू नहीं हो पाया क्योंकि अमेरिका और संयुक्त राष्ट्र ने तेहरान पर उसके परमाणु कार्यक्रम को लेकर प्रतिबंध लगा दिए थे. 2015 में अमेरिका के तात्कालिक राष्ट्रपति बराक ओबामा ने ईरान के साथ न्यूक्लियर डील के बाद प्रतिबंधों में ढील दी. ठीक उसी साल भारत ने ईरान के साथ चाबहार बंदरगाह को लेकर एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए, और 2016 में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की ईरान यात्रा के दौरान इसे लागू किया गया. लेकिन जब 2018 में ट्रंप के नेतृत्व में अमेरिका परमाणु समझौते से एकतरफा हट गया तो ईरान पर दोबारा प्रतिबंध लग गए. लेकिन भारत ने चाबहार पर काम करना जारी भी रखा और अमेरिकी प्रतिबंधों से बचा भी रहा. भारत ने पिछले साल ही, मई 2024 में ईरान के साथ चाबहार बंदरगाह के संचालन के लिए 10 साल के कॉन्ट्रैक्ट पर हस्ताक्षर किए हैं. हालांकि, समझौते पर हस्ताक्षर होने के बाद, अमेरिकी विदेश विभाग ने कहा कि ईरान के साथ व्यापारिक सौदों पर विचार करने वालों को "यह जानना चाहिए कि वे खुद को प्रतिबंधों के संभावित जोखिम के लिए खोल रहे हैं. अब अगर किसी न्यूक्लियर डील के बाद अमेरिका ईरान से आर्थिक प्रतिबंध हटा देता है तो भारत बिना किसी झिझक के इस प्रोजेक्ट को अलग ऊंचाई पर ले जा सकेगा. भारत के लिए अमेरिका और ईरान के बीच कोई न्यूक्लियर डील क्यों अहम है, यह समझने के लिए हमने ईरान में भारत के पूर्व राजदूत (2011-15) डी पी श्रीवास्तव से बात की. अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने चाबहार बंदरगाह में भारतीय भागीदारी पर ईरान के साथ बातचीत का नेतृत्व किया था. उन्होंने कहा कि ईरान और अमेरिका के बीच कोई समझौता दोनों के बीच तनाव कम करेगा और यह स्थिति भारत के लिए चाबहार प्रोजेक्ट पर फिर से काम करने का रास्ता बनाएगी. साथ ही यह चाबहार बंदरगाह के जरिए इंटरनेशनल नॉर्थ-साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर (NSTC) तक भारत को पहुंच भी प्रदान करेगा. गौरतलब है कि चाबहार बंदरगाह भारत की ट्रांसपोर्ट कनेक्टिविटी योजनाओं के लिए महत्वपूर्ण है. सबसे बड़ी बात कि यह पाकिस्तान को बाइपास करके अफगानिस्तान और सेंट्रल एशिया के लिए एक वैकल्पिक रास्ता प्रदान करता है, जिससे हमें सेंट्रल एशिया के साथ बेहतर व्यापार की अनुमति मिलती है. साथ ही उम्मीद है कि चाबहार के इंटरनेशनल नॉर्थ-साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर (NSTC) से जुड़ जाएगा, जो भारत को ईरान, अजरबैजान और रूस के माध्यम से यूरोप के करीब लाएगा. यह कॉरिडोर स्वेज नजर मार्ग का एक विकल्प होगा और जब यह पूरी तरह से चालू हो जाएगा तो अंतरमहाद्वीपीय व्यापार पर खर्च होने वाले समय और धन को कम करेगा. चीन ने भी चाबहार बंदरगाह के बमुश्किल 200 किमी दूर, पाकिस्तान के ग्वादर में बंदरगाह बनाया है.  अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार कमर आगा ने एनडीटीवी से बात की. उन्होंने कहा कि एक बार NSTC पूरी तरह चालू हो जाएगा तब चाबहार का असली असर देखने को मिलेगा, सेंट्रल एशिया, रूस से लेकर यूरोप तक का रास्ता खुलेगा. उनके अनुसार भले चाबहार पर ईरान के साथ काम करने को लेकर अमेरिका ने भारत पर कोई एक्शन नहीं लिया है लेकिन जबतक ईरान पर उसके प्रतिबंध खत्म नहीं होते (जो न्यूक्लियर डील के बाद होंगे), भारत के लिए एक थ्रेट बना रहेगा.  ईरान से तेल आयात का फैक्टर फिलहाल अमेरिकी प्रतिबंधों के कारण भारत ईरान से कच्चे तेल का आयात नहीं करता है. लेकिन इन प्रतिबंधों से पहले ईरान उन टॉप 3 देशों में शामिल था जहां से भारत कच्चा तेल मंगाता था. द न्यू इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार फरवरी के आखिर में ही अमेरिका ने ईरानी तेल के व्यापार और परिवहन में शामिल होने के आरोप में दुनिया भर में 30 से अधिक कंपनियों, जहाजों और व्यक्तियों पर प्रतिबंध लगा दिया था- इसमें भारत के दो बिजनेसमैन और 2 कंपनियां भी शामिल थीं. भारत को उम्मीद है कि एक बार न्यूक्लियर डील के बाद अमेरिकी प्रतिबंध हट जाए तो ईरान से तेल का आयात फिर से शुरू किया जाएगा. कमर आगा ने बताया कि ईरान से आने वाला तेल भारत के लिए सस्ता पड़ता है क्योंकि उसपर ट्रांसपोर्ट चार्ज कम पड़ता है. पड़ोस में हमेशा शांति चाहेगा भारत कमर आगा के अनुसार ईरान भारत के बहुत करीब बैठा देश है. पाकिस्तान के बनने से पहले ईरान से हमारी सीमा लगती थी. आज अगर ईरान में न्यूक्लियर हथियार बनेगा तो कल सऊदी अरब भी बनाएगा, मिस्र भी बनाएगा और देखकर तुर्की भी बनाएगा. चीन और पाकिस्तान के पास पहले से ही ऐसे हथियार हैं. भारत सरकार का यह स्टैंड है कि अगर ईरान ने आज न्यूक्लियर हथियार बना लिए तो देखा-देखी पूरे साउथ एशिया में परमाणु प्रसार (Nuclear proliferation) हो जाएगा. भारत कोई युद्ध नहीं चाहता, भारत के लिए ईरान एक मित्र देश है लेकिन वह कभी नहीं चाहेगा कि ईरान न्यूक्लियर हथियार बनाए. खुद ईरान का यह अधिकारिक स्टैंड है कि वह न्यूक्लियर हथियार नहीं बना रहा बल्कि उसका न्यूक्लियर प्रोग्राम केवल उसकी उर्जा आवश्यक्ताओं को पूरा करने के लिए है. साथ ही भारत हमेशा से एकतरफा प्रतिबंधों के खिलाफ रहा है. वह हर स्थिति में चाहेगा कि अमेरिका और ईरान के बातचीत के माध्यम से एक समझौता हो.  
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ट्रैरिफ वॉर के बीच चीन का अपने एयरलाइंस को फरमान- 'अमेरिकी कंपनी बोइंग से जेट की डिलीवरी रोक दें'

चीन ने अपनी एयरलाइनों से कहा है कि वे अमेरिकी की प्लेन बनाने वाली दिग्गज कंपनी बोइंग से जेट की डिलीवरी लेना बंद कर दें. यह रिपोर्ट मंगलवार, 15 अप्रैल को उस समय आई है जब चीन और अमेरिका के बीच व्यापार युद्ध गहरा गया है. चीन ने अपनी एयरलाइनों से कहा है कि वे अमेरिकी की प्लेन बनाने वाली दिग्गज कंपनी बोइंग से जेट की डिलीवरी लेना बंद कर दें. यह रिपोर्ट मंगलवार, 15 अप्रैल को उस समय आई है जब चीन और अमेरिका के बीच व्यापार युद्ध गहरा गया है. ब्लूमबर्ग न्यूज ने मामले से परिचित लोगों का हवाला देते यह रिपोर्ट छापी है. इस फाइनेंसियल न्यूज आउटलेट ने बताया कि बीजिंग ने अपने एयरलाइंस से अमेरिकी कंपनियों से विमान-संबंधी उपकरणों और भागों की खरीद को निलंबित करने के लिए भी कहा है. जनवरी में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के पदभार संभालने के बाद से, दुनिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाएं 'जैसे को तैसा' टैरिफ युद्ध में उलझी हैं. अमेरिका अब चीन से आयात पर 145 प्रतिशत तक शुल्क लगा रहा है. वहीं बीजिंग ने अमेरिकी आयात पर 125 प्रतिशत का जवाबी शुल्क लगाया है.  
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फिर दहला पाकिस्तान! बलूचिस्तान में पुलिस बस पर IED हमला, विस्फोट में 3 अधिकारी मरे- 16 घायल

पाकिस्तान के दक्षिण-पश्चिमी बलूचिस्तान प्रांत में मंगलवार, 15 अप्रैल को एक पुलिस बस को निशाना बनाकर किए गए विस्फोट में कम से कम तीन अधिकारी मारे गए और 16 अन्य घायल हो गए. आतंकवाद को पनाह देने वाला पाकिस्तान खुद हिंसा की आग में लगातार झुलस रहा है. पाकिस्तान के दक्षिण-पश्चिमी बलूचिस्तान प्रांत में मंगलवार, 15 अप्रैल को एक पुलिस बस को निशाना बनाकर किए गए विस्फोट में कम से कम तीन अधिकारी मारे गए और 16 अन्य घायल हो गए. न्यूज एजेंसी एएफपी की रिपोर्ट के अनुसार यह जानकारी पुलिस अधिकारियों ने ने दी है. बलूचिस्तान प्रशासन के अधिकारी राजा मुहम्मद अकरम ने बताया कि प्रांतीय राजधानी क्वेटा से लगभग 40 किलोमीटर दक्षिण में मस्तुंग जिले में जिस समय बस विस्फोट की चपेट में आई, उसमें लगभग 40 पुलिस अधिकारी सवार थे. राजा मुहम्मद अकरम ने कहा, "यह सड़क किनारे हुआ IED (इंप्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस) विस्फोट था, जिसमें तीन पुलिसकर्मियों की मौत हो गई, जबकि 16 अन्य घायल हो गए." गौरतलब है कि पाकिस्तान दशकों से बलूचिस्तान में अलगाववादी विद्रोह से जूझ रहा है. विद्रोही उग्रवादी अफगानिस्तान और ईरान की सीमा से लगे इस खनिज समृद्ध प्रांत में पुलिस-आर्मी, विदेशी नागरिकों और पाकिस्तान के दूसरे इलाकों के नागरिकों को निशाना बनाते हैं. प्रांतीय सरकार के प्रवक्ता शाहिद रिंद ने भी मृतक पुलिसकर्मियों की संख्या की पुष्टि की और कहा कि दो अधिकारियों की हालत गंभीर है. खबर लिखे जाने तक किसी भी समूह ने हमले की जिम्मेदारी नहीं ली थी. हालांकि शक की सुई बलूच लिबरेशन आर्मी (बीएलए) की तरफ ही जा रही है, जो इस क्षेत्र में सबसे सक्रिय समूह है और अक्सर सुरक्षा बलों के खिलाफ घातक हमले करता रहता है. पिछले महीने ही जातीय बलूच अलगाववादियों ने बलूचिस्तान के अंदर 450 यात्रियों वाली एक ट्रेन को हाइजैक कर लिया था. आर्मी और पुलिस को दो दिनों तक ऑपरेशन चलाना पड़ा था और इस दौरान दर्जनों लोग मारे गए थे. एएफपी की टैली के अनुसार, खैबर पख्तूनख्वा और बलूचिस्तान, दोनों प्रांत में सरकार से लड़ने वाले सशस्त्र समूहों ने इस साल की शुरुआत के बाद से किए गए हमलों में 200 से अधिक की जान ले ली है, जिनमें ज्यादातर सुरक्षा अधिकारी हैं. 2021 में अफगानिस्तान में तालिबान के सत्ता में आने के बाद से बढ़ते उग्रवाद के ट्रेंड के बाद पिछला साल पाकिस्तान में एक दशक में सबसे हिंसक साल था, उग्रवाद की वजह से पिछले एक दशक में सबसे अधिक मौते हुई थीं.  
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चीन ‘पत्थर’ में खोज रहा सोना! ट्रंप के टैरिफ वॉर के ड्रैगन के पास ये 5 जवाब...

डोनाल्ड ट्रंप के शुरू किए ट्रेड वॉर के बीच चीन और शी जिनपिंग के हाथ में कौन-कौन से कार्ड हैं जो तुरूप का इक्का साबित हो सकते हैं? अमेरिका और चीन आमने-सामने हैं. यह डोनाल्ड ट्रंप और शी जिनपिंग की खुली भिड़ंत है. दोनों के बीच इस मल्लयुद्ध के लिए मैदान दिया है ट्रंप के शुरू किए टैरिफ वॉर ने. दोनों ने एक-दूसरे के यहां से आने वाले सामानों पर ऐसे टैरिफ बढ़ाया जैसे किसी नीलामी में बोली लग रही हो. अभी की स्थिति यह है कि अमेरिका ने चीन से आने वाले सामानों पर 145 प्रतिशत का टैरिफ लगाया है जबकि चीन ने अमेरिका से आने वाले सामानों पर 125 प्रतिशत तक का टैरिफ लाद दिया है.  अब सवाल है कि किसका पलड़ा भारी दिख रहा है? चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग टैरिफ वॉर के बीच वियतनाम, मलेशिया और कंबोडिया के दौरे पर हैं. ट्रंप ने कहा है कि शी जिनपिंग यह दौरा यह तरकीब निकालने के लिए कर रहे हैं कि कैसे अमेरिका को नुकसान पहुंचाया जा सके. दूसरी तरफ चीन ने अपने देश से रेयर अर्थ मेटल्स के निर्यात पर पूरी तरह रोक लगा दी गई है. इसे भी ट्रंप पर दबाव बनाने की रणनीति के रूप में देखा जा रहा. चलिए जानने की कोशिश करते हैं कि चीन और शी जिनपिंग के हाथ में कौन-कौन से कार्ड हैं जो तुरूप का इक्का साबित हो सकते हैं. 1. रेयर अर्थ मेटल्स को जिनपिंग ने ट्रेड वॉर में बनाया हथियार? अमेरिका से बढ़ते ट्रेड वॉर के बीच बीजिंग ने कई महत्वपूर्ण दुर्लभ पृथ्वी तत्वों (रेयर अर्थ मेटल्स), धातुओं और मैग्नेट के निर्यात पर रोक लगा दी है. चीन का यह कदम अपने आप में बड़ा है क्योंकि दुनियाभर में जितने भी रेयर अर्थ मेटल्स निकलते हैं उनमें से 90% फिल्ड चीन के अंदर ही है. यानी चीन का उनपर लगभग एकाधिकार ही है. अब आप पूछ सकते हैं कि अगर चीन ने रेयर अर्थ मेटल्स नहीं दिया तो ऐसा क्या कहर टूट जाएगा. यहां आपको यह बता दें कि आज के टेक्नोलॉजी के जमाने में रेयर अर्थ मेटल्स ऐसा फैक्टर है जिससे कंट्रोल अपने हाथ में बनाया रखा जा सकता है. दरअसल हथियारों से लेकर इलेक्ट्रॉनिक उपकरण, गाड़ी बनाने से लेकर एयरोस्पेस बनाने तक, सेमीकंडक्टर बनाने से और उपभोक्ता वस्तुओं बनाने तक, हर जगह रेयर अर्थ की कंपोनेंट हैं, अहम हैं.  अब चीन ने इनके निर्यात पर रोक लगाकर अमेरिका को चोक करना शुरू कर दिया है. यह सही है कि अमेरिका ने धीरे-धीरे चीन से रेयर अर्थ के आयात को 2017 में 80% से घटाकर आज के वक्त में लगभग 70% कर दिया है. लेकिन अभी अमेरिका जिन अन्य देशों से इसका आयात कर भी रहा है वहां भी चीन से ही यह प्रोसेस होकर पहुंच रहा है. यानी अभी भी कई अमेरिकी डिफेंस कॉन्ट्रैक्टर या हाई टेक कंपनियां अपने उत्पादों के लिए घुमा-फिरा कर चीन पर निर्भर हैं. 2- ‘पड़ोसियों' को जमा कर रहे शी जिनपिंग? ट्रेड वॉर के बीच चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग 5 दिनों की यात्रा पर निकले हैं. सोमवार को वो वियतनाम पहुंचें जहां उन्होंने शीर्ष नेता टू लैम से मुलाकात की, मजबूत व्यापार संबंधों का आह्वान किया और सप्लाई चेन बढ़ाने सहित दर्जनों सहयोग समझौतों पर हस्ताक्षर किए. इसके बाद वो मलेशिया और कंबोडिया पहुंच रहे हैं. शी जिनपिंग की वियतनाम यात्रा एक ऐसे पड़ोसी के साथ संबंधों को मजबूत करने का अवसर प्रदान करती है, जिसे हाल के वर्षों में अरबों डॉलर का चीनी निवेश मिला है. चीन स्थित निर्माता ट्रंप प्रशासन द्वारा लगाए गए टैरिफ से बचने के लिए पहले ही इस देश में चले आए थे.  शी जिनपिंग ने ट्रंप की टैरिफ घोषणा से पहले ही इन तीनों देशों की यात्रा करने की योजना बनाई थी, लेकिन संयोग ऐसा बैठा कि ट्रेड वॉर के बीच यह यात्रा हो रही है. ऐसे में यह चीन के लिए एक अवसर बन गया है. शी जिनपिंग इन पड़ोसी देशों के सामने यह दिखाना चाहते हैं कि ट्रंप के लीडरशीप में वाशिंगटन की नीति अराजक है और बार-बार इसमें उलटफेर होता है. इसके विपरीत जिनपिंग चीन को एक स्थिर व्यापारिक भागीदार के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं. 3- अमेरिकी ट्रेजरी बिल खरीदकर कंट्रोल पहले ही हाथ में ले लिया?  इस प्वाइंट को समझने के लिए आपको पहले यह जानना होगा कि आखिर ट्रेजरी बिल होता क्या है. दरअसरल यह सरकार के पैसा जमा करने का एक जरिया होता है. ट्रेजरी बिल किसी देश की सरकार द्वारा जारी किया जाने वाला एक मनी मार्केट इंस्ट्रूमेंट है. मान लीजिए सरकार को 900 रूपए चाहिए. तो वह 100-100 रुपए के 10 ट्रेजरी बिल जारी करेगी जिसे कंपनियां या दूसरे देश 90-90 रुपए में खरीदते लेंगे. इन बिल पर कोई ब्याज नहीं मिलता है, बल्कि 100 रुपए के बिल को 90 रुपए में खरीदा जाता है और एक खास वक्त बाद वह ट्रेजरी बिल सरकार को वापस देने पर 100 रुपए मिल जाते हैं. यही कमाई होती है. अब वापस आते हैं कि चीन इन अमेरिकी ट्रेजरी बिल को कैसे हथकंड़ा बना सकता है. जापान के बाद चीन के पास सबसे अधिक अमेरिकी ट्रेजरी बिल हैं- इनकी कीमत 760 बिलियन डॉलर है. यानी एक तरह से इतना रुपया अमेरिका ने चीन से उधार ले रखा है. अब चीन इन ट्रेजरी बिल को अमेरिका के खिलाफ इस्तेमाल कर सकता है. अगर चीन इन ट्रेजरी बिल को कम कीमत पर ही सही, बेचने लगा तो अमेरिकी डॉलर की कीमत गिरने लगेगी. अलजजीरा की रिपोर्ट के अनुसार इकनॉमिक थिंक टैंक, ग्राउंडवर्क कोलैबोरेटिव में नीति और वकालत के प्रमुख एलेक्स जैक्वेज ने कहा कि इसके न केवल घरेलू बल्कि वैश्विक परिणाम और वास्तव में अप्रत्याशित परिणाम हो सकते हैं. वहीं न्यू हेवन यूनिवर्सिटी में अकाउंटिंग, टैक्सेसन और लॉ के प्रोफेसर जेम्स मोह्स का कहना है कि अगर चीन अमेरिका द्वारा जारी किए जाने वाले ट्रेजरी बिल का और अधिक हिस्सा खरीद ले तो स्थिति और बुरी हो सकती है. इस मामले में भी डॉलर कमजोर हो सकता है क्योंकि अमेरिका पर कर्ज और बढ़ जाएगा.  4- अमेरिका के एग्रीकल्चर सेक्टर पर निशाना  चीन जब चाहे तब पोल्ट्री और सोयाबीन जैसे अमेरिका के प्रमुख कृषि निर्यात क्षेत्रों को टारगेट कर सकता है. अमेरिका के ये सेक्टर चीन से आने वाली मांग पर बहुत अधिक निर्भर हैं और उन राज्यों में केंद्रित हैं जिन्होंने ट्रंप को वोट दिया है. उन्हें झटका देकर चीन ट्रंप के वोट बैंक को झटका दे सकता है. अमेरिका के सोयाबीन निर्यात का लगभग आधा और अमेरिकी पोल्ट्री निर्यात का लगभग 10% हिस्सा चीन में आता है. 4 मार्च को ही बीजिंग ने तीन प्रमुख अमेरिकी सोयाबीन निर्यातकों के लिए आयात मंजूरी रद्द कर दी है. 5- चीन में उत्पादन कर रहे अमेरिकी टेक कंपनियों पर निशाना Apple और Tesla जैसी कई अमेरिकी कंपनियां अपने उत्पादन के लिए चीन से गहराई से जुड़ी हुई हैं. टैरिफ से उनके प्रोफिट मार्जिन में काफी कमी आने का खतरा है. बीजिंग का मानना ​​है कि इसका इस्तेमाल ट्रंप सरकार के खिलाफ लाभ उठाने के लिए किया जा सकता है. बीजिंग कथित तौर पर चीन में काम कर रही अमेरिकी कंपनियों पर नियामक दबाव के माध्यम से जवाबी हमला करने की योजना बना रहा है.  
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सिर्फ वुमन पावर! सिंगर कैटी पैरी इन 5 महिलाओं संग नापेंगी अंतरिक्ष, जानिए Blue Origin मिशन खास क्यों?

अरबपति जेफ बेजोस की होने वाली दुल्हनिया लॉरेन सांचेज और पॉपस्टार कैटी पेरी सोमवार, 14 अप्रैल को एक ऐसे स्पेस मिशन के साथ अंतरिक्ष में जाने के लिए तैयार हैं, जिसमें केवल फीमेल क्रू है. अरबपति जेफ बेजोस की होने वाली दुल्हनिया लॉरेन सांचेज और पॉपस्टार कैटी पेरी सोमवार, 14 अप्रैल को एक ऐसे स्पेस मिशन के साथ अंतरिक्ष में जाने के लिए तैयार हैं, जिसमें केवल फीमेल क्रू है. पेरी और सांचेज जिस पूरी तरह से महिला दल का हिस्सा हैं, उसमें उनके अलावा पत्रकार और टीवी प्रजेंटर गेल किंग, ह्यूमन राइट्स एक्टिविस्ट अमांडा गुयेन, फिल्म मेकर केरियन फ्लिन और नासा की पूर्व रॉकेट साइंटिस्ट आयशा बोवे भी शामिल हैं. छह महिलाओं का यह क्रू सोमवार को स्थानीय समयानुसार सुबह 8.30 बजे अमेरिका के टेक्सास में जेफ बेजोस की स्पेस कंपनी ब्लू ओरिजिन के रॉकेट पर बैठकर 11 मिनट की उपकक्षीय उड़ान भरेंगे. ये अंतरिक्ष के किनारे तक जाएंगे और उसे छूने के बाद वापस उड़ान भरेंगे. यह मिशन ब्लू ओरिजिन के न्यू शेपर्ड प्रोग्राम का हिस्सा है, जिसे NS-31 नाम दिया गया है. इसका उद्देश्य "एक ऐसा स्थायी प्रभाव पैदा करना है जो पीढ़ियों को प्रेरित करेगा." पिछले 60 से अधिक सालों में यह पहली ऐसी उड़ान होगी जिसमें कोई पुरुष शामिल न हो. इससे पहले 1963 में रूसी इंजीनियर वेलेंटीना टेरेश्कोवा ने अकेले अंतरिक्ष की यात्रा की थी. मिशन को जानिए कैटी पेरी और 5 अन्य क्रू मेंबर को ले जाने वाला ब्लू ओरिजिन का न्यू शेपर्ड रॉकेट पृथ्वी से 100 किमी (62 मील) की अधिकतम ऊंचाई तक पहुंचेगा. रॉकेट के नोज पर मौजूद कैप्सूल में यह टीम बैठी होगी. रॉकेट से अलग होने के बाद यह कैप्सूल तकनीकी रूप से के साथ कर्मन रेखा को पार करते हुए अंतरिक्ष में प्रवेश करेगा. इस इमेजिनरी कर्मन रेखा को ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अंतरिक्ष की सीमा माना जाता है, यानी इसके बाद अंतरिक्ष शुरू हो जाता है. अंतरिक्ष में रहते हुए यह टीम लगभग चार मिनट तक भारहीनता का अनुभव करेंगी यानी जीरो-ग्रेविटी में उन्हें अपनी बॉडी का कोई वजन फील नहीं होगा. टीम कैप्सूल की बड़ी खिड़कियों से अंतरिक्ष और पृथ्वी को देखने के लिए उसके अंदर ही इधर-उधर तैर सकती है. फिर उनका यह कैप्सूल तीन पैराशूट की मदद से वापस पृथ्वी पर उतरेगा. बेजोस की होने वाली पत्नी और लेखिका सांचेज इस मिशन का नेतृत्व कर रही हैं. उन्होंने एले मैगजीन को बताया कि क्रू के अन्य मेंबर को इसलिए चुना गया क्योंकि उन्होंने "दूसरों को प्रेरित करने की अपनी क्षमता साबित की है". वहीं पॉपस्टार कैटी पेरी ने मैगजीन को बताया कि वह लगभग 20 वर्षों से अंतरिक्ष में जाने का अवसर चाहती थी. उन्होंने कहा, "जब ब्लू ओरिजिन पहली बार अंतरिक्ष की कमर्शियल ट्रीप के बारे में बात कर रहा था, तो मैंने कहा, 'मुझे साइन अप करें! मैं कतार में पहली हूं.' और फिर उन्होंने मुझे फोन किया, और मैंने कहा, 'सच में? मुझे एक इंविटेशन मिला है."  यह मौका नासा की रॉकेट वैज्ञानिक बोवे, ह्यूमन राइट्स एक्टिविस्ट गुयेन और फिल्म मेकर फ्लिन के लिए भी एक सपने के सच होने जैसा है. पैसा लेकर अंतरिक्ष घुमा रहा “ब्लू ओरिजिन” अब तक, अमेजॉन के को-फाउंडर बेजोस के खुद से चलने वाले रॉकेट 52 लोगों को अंतरिक्ष में ले गए हैं. खुद बेजोस 2021 में न्यू शेपर्ड रॉकेट की पहली फ्लाइट में शामिल हुए थे. स्टार ट्रेक के एक्टर विलियम शैटनर (​​​​कैप्टन जेम्स टी किर्क) 2022 में मिशन में शामिल हुए थे. वे 90 साल की उम्र में अंतरिक्ष में जाने वाले सबसे उम्रदराज व्यक्ति बन गए थे. शैटनर ने बाद में मीडिया को बताया कि इस अनुभव से उनकी आंखों में आंसू आ गए.  
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ईरान में पाकिस्तानियों की ‘टारगेट किलिंग’ कौन कर रहा? बॉर्डर के दोनों पार बलूचिस्तान कनेक्शन..

पाकिस्तानी प्रधान मंत्री शहबाज शरीफ ने रविवार को "आठ पाकिस्तानियों की क्रूर हत्याओं" की निंदा की, तेहरान से "दोषियों को तुरंत गिरफ्तार करने, उन्हें उचित सजा देने और इस क्रूर कृत्य के पीछे के कारणों को सार्वजनिक करने" का आह्वान किया. बलूच अलगाववादियों ने ईरान के अंदर आठ पाकिस्तानियों की हत्या कर दी. ईरान के जिस भाग में यह हमला किया गया है वह पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत की सीमा से लगता है और लगभग 230 किमी दूर है. पाकिस्तानी प्रधान मंत्री शहबाज शरीफ ने रविवार को "आठ पाकिस्तानियों की क्रूर हत्याओं" की निंदा की, तेहरान से "दोषियों को तुरंत गिरफ्तार करने, उन्हें उचित सजा देने और इस क्रूर कृत्य के पीछे के कारणों को सार्वजनिक करने" का आह्वान किया. इन हत्याओं की जिम्मेदारी दो समूहों ने ली है- बलूच नेशनलिस्ट आर्मी (बीएनए) जो आजाद बलूचिस्तान की मांग करने वाली अलगाववादी समूह है. दूसरा समहू जैश अल-अदल (अरबी फॉर आर्मी ऑफ जस्टिस) है जो पाकिस्तान में स्थित एक बलूच जिहादी समूह है लेकिन ईरान में भी सक्रिय है. कैसे हुई हत्या? न्यूज एजेंसी- एसोसिएटेड प्रेस ऑफ पाकिस्तान के अनुसार मारे गए आठ लोग पाकिस्तान के सबसे अधिक आबादी वाले प्रांत पंजाब से थे. मीडिया रिपोर्टों की माने तो, अज्ञात हथियारबंद लोग शनिवार रात किसी समय एक वर्कशॉप में घुस आए और वहां काम कर रहे पाकिस्तानी वर्कर्स के हाथ-पैर बांधने के बाद अंधाधुंध गोलीबारी की और उनकी हत्या कर दी. बाद में हमलावर घटनास्थल से भाग गये. पाकिस्तानी मजदूर आमतौर पर ईरान के सीमावर्ती क्षेत्र में कार रिपेयरिंग और खेती का काम करते हैं. हालांकि हाल में हुई टारगेटेड किलिंग ईरान के इस इलाके में पाकिस्तानी वर्कर्स के लिए बढ़ती असुरक्षा का संकेत देती हैं. पाकिस्तान ने क्या मांग की है? प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने पाकिस्तानी वर्कर्स की "क्रूर हत्या" पर गहरा दुख व्यक्त किया. प्रधानमंत्री के हवाले से कहा गया, "आतंकवाद का खतरा सभी क्षेत्रीय देशों के लिए विनाशकारी है." उन्होंने ईरानी सरकार से अपराधियों को तुरंत गिरफ्तार करने, उन्हें उचित सजा देने और इस क्रूर कृत्य के कारणों को सामने लाने का आग्रह किया. पीएम शहबाज ने विदेश मंत्रालय को मृत पाकिस्तानियों के परिवारों और उनके शवों की सुरक्षित वापसी के लिए ईरान में पाकिस्तान के दूतावास से संपर्क करने का भी निर्देश दिया.  इस बीच, आठ "मोटर मैकेनिकों और मजदूरों" के परिजनों ने पाकिस्तानी सरकार से अपील की है कि वे अपने प्रियजनों के शवों की जल्द से जल्द स्वदेश वापसी सुनिश्चित करें. 8 पाकिस्तानियों की हत्या पर ईरान ने क्या कहा? पाकिस्तान में ईरान के राजदूत रेजा अमीरी मोघदाम ने एक बयान में आठ पाकिस्तानी नागरिकों के खिलाफ हत्या की कड़ी निंदा की. बयान में कहा गया है, "आतंकवाद एक पुरानी दुर्दशा है और पूरे क्षेत्र में एक आम खतरा है, जिसके द्वारा देशद्रोही तत्व, अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद के साथ मिलकर, पूरे क्षेत्र में सुरक्षा और स्थिरता को निशाना बनाते हैं." मोघदाम ने जोर देकर कहा, "इस अशुभ घटना से निपटने के लिए सभी देशों द्वारा आतंकवाद और उग्रवाद के सभी रूपों को खत्म करने के लिए सामूहिक और संयुक्त प्रयासों की आवश्यकता है, जिन्होंने हाल के दशकों में हजारों निर्दोष लोगों की जान ले ली है." हिंसा से जूझता बलूचिस्तान गरीब बलूचिस्तान दशकों से उग्रवाद से जूझ रहा है, यहां के अलगाववादी समूहों का दावा है कि पाकिस्तान के दूसरे राज्यों के लोगों द्वारा इसका शोषण किया जा रहा है, इसके प्राकृतिक संसाधनों से धन स्थानीय आबादी को बहुत कम लाभ मिल रहा है. इसी महीने ईरान द्वारा बलूचिस्तान के सीमावर्ती शहर पंजगुर पर हमले के बाद पाकिस्तान ने सिस्तान-बलूचिस्तान में आतंकवादी ठिकानों पर जवाबी हमले किए थे. सिस्तान-बलूचिस्तान की सीमा से लगे बलूचिस्तान में पंजाब के लोगों को निशाना बनाकर कई हमले देखे गए हैं. मार्च के अंत में, बलूचिस्तान के ग्वादर जिले के कलमत इलाके में गोलीबारी की घटना में पांच यात्रियों की गोली मारकर हत्या कर दी गई, अधिकारियों ने कहा कि उनमें से कम से कम चार पंजाब के थे. उससे कुछ दिन पहले कलात जिले में अज्ञात हमलावरों ने पंजाब के चार मजदूरों की गोली मारकर हत्या कर दी थी. फरवरी में, पंजाब जाने वाले सात यात्रियों को एक बस से उतार दिया गया और प्रांत के बरखान जिले में गोली मारकर हत्या कर दी गई. पिछले साल अगस्त में, जब प्रांत पर प्रतिबंधित बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी के हमलों की बाढ़ आ गई थी, तो मुसाखाइल जिले में 23 यात्रियों को ट्रकों और बसों से उतार दिया गया और गोली मार दी गई. पिछले साल जनवरी में, पाकिस्तान के साथ सीमा के पास ईरान के दक्षिण-पूर्वी क्षेत्र में गोलीबारी की घटना में कम से कम नौ पाकिस्तानी मारे गए थे और तीन घायल हो गए थे. यह हिंसक घटना इस्लामाबाद और तेहरान के बीच थोड़े तनाव के बाद आधिकारिक तौर पर राजनयिक संबंधों को फिर से शुरू करने के एक दिन बाद हुई थी. ईरान से बलूच आंदोलन का क्या संबंध? 909 किलोमीटर की लंबी ईरान-पाकिस्तान सीमा को गोल्डस्मिथ लाइन के नाम से जाना जाता है. यह अफगानिस्तान से उत्तरी अरब सागर तक फैली हुई है. लगभग 90 लाख जातीय बलूच सीमा के दोनों ओर रहते हैं- पाकिस्तानी प्रांत बलूचिस्तान और ईरानी प्रांत सिस्तान और बलूचिस्तान में. अन्य 5 लाख उत्तर में अफगानिस्तान के पड़ोसी क्षेत्रों में रहते हैं. हथियारबंद विद्रोह भी पाकिस्तान और ईरान के बीच लंबे समय से तनाव की एक बड़ी वजह रही है. दोनों ने एक-दूसरे पर अलगाववादी आतंकवादियों को पनाह देने का आरोप लगाया है. पिछले दशक में सीमा पार हमलों में कई सैनिक, पुलिस अधिकारी और नागरिक मारे गए हैं. ईरान ने, विशेष रूप से, पाकिस्तान पर सुन्नी अलगाववादी समूह जैश अल-अदल के आतंकवादियों को बलूचिस्तान से स्वतंत्र रूप से काम करने और ईरानी अधिकारियों पर हमले करने की अनुमति देने का आरोप लगाया है. ईरान और पाकिस्तान पहले भी बलूच विद्रोह से निपटने के लिए सहयोग कर चुके हैं. लेकिन साथ ही दोनों देश एक-दूसरे पर आतंकवादियों को पनाह देने और समर्थन करने का आरोप लगाते रहे हैं.  
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पगला मस्जिद में फिर निकला नोटों का भंडार, 28 बोरों में रखा गया कैश, गिनने के लिए लगी 400 लोगों की टीम..

पगला मस्जिद में दान किए गए नोटों को गिनने के लिए 400 लोगों की टीम लगाई गई है। इस मस्जिद में 4 महीने 12 दिन बाद दान पेटियों को खोला गया है। इसके पहले भी यहां करोड़ों का कैश दैन किया जा चुका है। बांग्लादेश के किशोरगंज जिले में पगला मस्जिद है। यह मस्जिद एक बार फिर चर्चा का विषय बनी हुई है। इस मस्जिद में 4 महीनों के अंदर करोड़ों का दान किया गया है। जहां 28 बोरों में बांग्लादेशी रुपयों (टका) को भरा गया है। इसे गिनने के लिए 400 लोगों की टीम लगाई गई है।  11 दान पेटियां खोली गईं ढाका ट्रिब्यून की रिपोर्ट के अनुसार, किशोरगंज के उपायुक्त और पगला मस्जिद प्रबंधन समिति के अध्यक्ष फौजिया खान और पुलिस अधीक्षक मोहम्मद हसन चौधरी की उपस्थिति में पगला मस्जिद की दान पेटियां खोली गईं। प्रबंधन समिति की अध्यक्ष फौजिया खान ने बताया कि इस बार 11 दान पेटियां खोली गईं हैं। एकत्र की गई नकदी को गिनती के लिए मस्जिद की दूसरी मंजिल पर लाया गया है। मस्जिद के बैंक खाते में 80.75 करोड़ टका इसके साथ ही फौजिया खान ने बताया कि हालांकि, मस्जिद में दान की पेटी आमतौर पर हर तीन महीने में खोले जाती हैं। इस बार इन्हें चार महीने और 12 दिन बाद खोला गया है। वर्तमान में मस्जिद के बैंक खाते में 80.75 करोड़ टका (बांग्लादेशी रुपया) है। 400 लोगों की टीम कर रही नोटों कि गिनती पगला मस्जिद में दान की रकम गिने जाने के दौरान अतिरिक्त उपायुक्त एवं रूपाली बैंक के सहायक महाप्रबंधक (AGM) मोहम्मद अली हरेसी भी उपस्थित रहे। मस्जिद प्रबंधन समिति के सदस्यों, शिक्षकों और मस्जिद परिसर में स्थित मदरसा और अनाथालय के छात्रों सहित लगभग 400 लोगों की एक टीम ने गिनती प्रक्रिया में भाग लिया। पिछली बार 8.21 करोड़ टका की हुई थी गिनती बता दें कि इससे पहले पिछले साल 30 नवंबर को अधिकारियों को तीन महीने और 14 दिन बाद खोले गए दस दान पेटियों और एक टैंक में 8.21 करोड़ टका (बांग्लादेशी रुपये) मिले थे। स्थानीय मुद्रा के अलावा दान पेटियों से बड़ी मात्रा में विदेशी मुद्राएं और सोने के आभूषण भी मिले हैं।  
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अमेरिका में 30 दिन से ज्यादा रहना है तो रजिस्ट्रेशन कराओ, वरना होगी जेल, विदेशी नागरिकों को ट्रंप सरकार की चेतावनी..

अमेरिकी सरकार ने कहा है कि अवैध रूप से रहने वाले यहां से खुद चले जाएंगे तो आपराधिक रिकॉर्ड से बच सकते हैं। वरना जुर्माना और जेल दोनों का सामना करना पड़ेगा। अमेरिकी सरकार ने कहा है कि बिना पंजीकरण के 30 दिनों से अधिक समय तक अमेरिका में रहने वाले विदेशी नागरिकों को जुर्माना और जेल की सजा सहित कठोर दंड का सामना करना पड़ेगा। होमलैंड सुरक्षा विभाग (डीएचएस) ने कहा कि अमेरिका में 30 दिनों से अधिक समय तक रहने वाले विदेशी नागरिकों को संघीय सरकार के साथ पंजीकरण कराना होगा। इसका पालन न करना एक अपराध है जिसके लिए जुर्माना और कारावास की सजा हो सकती है। होमलैंड सुरक्षा विभाग ने एक्स पर कहा कि राष्ट्रपति ट्रंप और सेक्रेटरी नोएम का अवैध विदेशियों के लिए स्पष्ट संदेश है। अभी निकल जाओ वरना जेल होगी। विभाग ने कहा कि अवैध विदेशी यहां से खुद चले जाएं।  कौन प्रभावित होगा? अमेरीक सरकार का यह आदेश कानूनी वीजा धारकों को तुरंत प्रभावित नहीं करेगा - जैसे कि एच-1बी वर्क परमिट या छात्र वीजा वाले लोग।   ये व्यक्ति प्रभावित होंगे एच-1बी वीजा धारक जो अपनी नौकरी खो देते हैं लेकिन अपनी छूट अवधि के बाद भी देश में बने रहते हैं। होमलैंड सुरक्षा विभाग निर्देश में उन लोगों के लिए कठोर दंड की रूपरेखा दी गई है जो 30 दिनों के बाद भी सरकार के साथ पंजीकरण करने में विफल रहते हैं या अधिक समय तक रुकते हैं।   1000 से 5000 डॉलर लग सकता है जुर्माना अवैध रूप से अमेरिका में रहने वालों को 998 डॉलर प्रतिदिन का जुर्माना देना पड़ेगा। ऐसे लोगों पर सरकार पांच हजार डॉलर का भी जुर्माना लगा सकती है। सरकार ने कहा है कि यात्रा का खर्च वहन करने में असमर्थ लोग सब्सिडी वाली घर वापसी की उड़ान के लिए भी पात्र हो सकते हैं।  
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अमेरिका के एक गवर्नर की हवेली में शख्स ने लगा दी आग, हमले में बाल-बाल बचा परिवार, संदिग्ध गिरफ्तार....

अमेरिका में नेताओं के खिलाफ हिंसा की घटनाओं में गवर्नर के घर पर हमला ताजा मामला है. देश में लोगों के विचार आपस में बहुत अलग हैं, जिससे ऐसी हिंसा और बढ़ रही है. न्यूयॉर्क, 14 अप्रैल: अमेरिकी राज्य पेंसिल्वेनिया के गवर्नर जोश शापिरो और उनका परिवार उनके आधिकारिक आवास पर तड़के हुए हमले से सुरक्षित बच गया. एक व्यक्ति ने सुरक्षाकर्मियों को चकमा देकर इमारत में आग लगा दी थी. अब उस पर आतंकवाद के आरोप लगाए जाएंगे. शापिरो ने बताया कि रविवार को लगभग 2 बजे पुलिस ने उन्हें जगाया और राज्य की राजधानी हैरिसबर्ग स्थित आवास से उन्हें सुरक्षित बाहर निकाला. अधिकारियों ने बताया कि आग लगाने वाले संदिग्ध व्यक्ति कोडी बामर (38 साल) को शहर के बाहर से गिरफ्तार कर लिया गया. स्थानीय अभियोजक फ्रैन चार्डो ने कहा कि कोडी बामर पर आतंकवाद, हत्या का प्रयास और आगजनी का आरोप लगाया जाएगा. शापिरो यहूदी हैं और यह हमला उनके धर्म के पवित्र पर्व पासओवर के दौरान हुआ. कुछ घंटे पहले, गवर्नर ने उसी कमरे में पारंपरिक सेडर डिनर आयोजित किया था, जहां आग लगाई गई थी. शापिरो ने कहा, "अगर वह मेरे परिवार, मेरे दोस्तों को डराने की कोशिश कर रहा था, तो हमने अपने पर्व को गर्व से मनाया. कोई मुझे अपने धार्मिक पर्व को खुलकर मनाने से नहीं रोक सकता." गवर्नर ने अपने आवास के बाहर प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए कहा, "इस तरह की हिंसा ठीक नहीं है. मुझे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि यह हरकत एक खास पक्ष की ओर से है या किसी और की तरफ से की गई. यह ठीक नहीं है." शापिरो डेमोक्रेटिक पार्टी के एक प्रभावशाली नेता हैं. रिपोर्टों के अनुसार, कथित हमलावर के समान नाम वाले एक व्यक्ति की संपत्ति को कर्ज न चुकाने के कारण अदालती आदेश के तहत नीलाम होने वाली है. अमेरिका में नेताओं के खिलाफ हिंसा की घटनाओं में गवर्नर के घर पर हमला ताजा मामला है. देश में लोगों के विचार आपस में बहुत अलग हैं, जिससे ऐसी हिंसा और बढ़ रही है. पिछले साल, डोनाल्ड ट्रंप पर राष्ट्रपति के चुनाव प्रचार के दौरान पेंसिल्वेनिया में जानलेवा हमला किया गया था. इस हमले में वह घायल हो गए थे, वहीं फ्लोरिडा में भी एक अन्य प्रयास को विफल कर दिया गया था. 2023 में पूर्व स्पीकर नैन्सी पेलोसी के घर में एक व्यक्ति घुस गया था और इस हमले में उनके पति गंभीर रूप से घायल हो गए थे.  
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शी जिनपिंग ट्रेड वॉर को बनाएंगे ‘आपदा में अवसर’? जानें चीन के पड़ोसी देशों की उनकी यात्रा खास क्यों?

चीनी राष्ट्रपति जिनपिंग सोमवार, 14 अप्रैल को दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों का दौरा शुरू करते हुए वियतनाम पहुंचेंगे. यहां वह बढ़ते ट्रेडवॉर के बीच पड़ोसी देशों के साथ संबंधों को मजबूत करने की कोशिश करेंगे. अमेरिका और चीन में फुल-स्केल ट्रेडवॉर जारी है. यानी अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और उनके चीनी समकक्ष शी जिनपिंग एक-दूसरे पर बढ़ाकर टैरिफ लगाने में कोई संकोच नहीं कर रहे हैं. ऐसे में चीनी राष्ट्रपति जिनपिंग सोमवार, 14 अप्रैल को दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों का दौरा शुरू करते हुए वियतनाम पहुंचेंगे. यहां वह बढ़ते ट्रेडवॉर के बीच पड़ोसी देशों के साथ संबंधों को मजबूत करने की कोशिश करेंगे. शी का यह पांच दिनों का दौरा वियतनाम से शुरू हो रहा है जो अपने आप में मैन्युफैक्चरिंग पावरहाउस है. यहां के नेताओं के मुलाकात के बाद वो मलेशिया और कंबोडिया की यात्रा के लिए रवाना होंगे. कंबोडिया के लिए कपड़ा और जूता निर्माण का क्षेत्र उसकी अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण है.  शी जिनपिंग का यह दौरा खास क्यों है? उम्मीद जताई जा रही है कि चीन संभवतः इस यात्रा का उपयोग इस बात पर जोर देने के लिए करेगा कि वह अमेरिका के उलट इन पड़ोसी देशों के लिए एक स्थिर पार्टनर है. वह ट्रंप के टैरिफ पॉलिसी की ओर इशारा करके इन देशों को डील करने के लिए राजी करना चाहेगा. ट्रंप की टैरिफ पॉलिसी और उसमें बार-बार के परिवर्तन ने इन निर्यात-निर्भर देशों को सकते में डाल दिया है. वियतनाम और कंबोडिया, दोनों ही अमेरिकी टैरिफ से सबसे बुरी तरह प्रभावित हुए हैं. दोनों पर ट्रंप ने क्रमशः 46% और 49% का टैरिफ लगाया था, जिसे अभी उन्होंने 10 प्रतिशत बेसिक टैरिफ के साथ 90 दिनों के लिए टाल दिया है.  उम्मीद जताई जा रही है कि शी जिनपिंग सोमवार को वियतनाम के साथ दर्जनों समझौतों पर हस्ताक्षर करेंगें. वियतनाम के एक प्रमुख अखबार में शी जिनपिंग ने दोनों देशों से बहुपक्षीय व्यापार प्रणाली, स्थिर वैश्विक औद्योगिक- आपूर्ति श्रृंखलाओं और खुले- सहकारी अंतरराष्ट्रीय वातावरण की दृढ़ता से रक्षा करने का आग्रह किया. उन्होंने बीजिंग की यह बात भी दोहराई कि "व्यापार युद्ध और टैरिफ युद्ध से कोई विजेता नहीं बनेगा और संरक्षणवाद कहीं नहीं ले जाएगा". द गार्डियन की रिपोर्ट के अनुसार पूर्व अमेरिकी व्यापार वार्ताकार स्टीफन ओल्सन ने कहा कि शी जिनपिंग के दौरे पर चीन शायद खुद को नियम-आधारित व्यापार प्रणाली के जिम्मेदार नेता के रूप में स्थापित करने की कोशिश करेगा. यानी एक ऐसे देश के रूप में जो नियम के आधार पर व्यापार करता है. जबकि वह अमेरिका को एक ऐसे दुष्ट राष्ट्र के रूप में चित्रित करेंगे जो व्यापार संबंधों के लिए हथौड़े का सहारा लेने का इरादा रखता है."   
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