महागठबंधन की बैठक: स्ट्राइक रेट में है पूरा गेम, कांग्रेस, राजद, लेफ्ट, पारस, सहनी किसके खाते में होगी कितनी सीटें?

महागठबंधन की बैठक: स्ट्राइक रेट में है पूरा गेम, कांग्रेस, राजद, लेफ्ट, पारस, सहनी किसके खाते में होगी कितनी सीटें?

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2020 के विधानसभा चुनाव में महागठबंधन में सीटों का बंटवारा अलग समीकरणों पर हुआ था, लेकिन इस बार INDIA गठबंधन की छाया और जातीय गणित ने समीकरणों को और पेचीदा बना दिया है.

बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव की सरगर्मी तेज हो गई है और महागठबंधन की सियासी बिसात एक बार फिर से सजने लगी है. इस बार पूरा खेल ‘स्ट्राइक रेट' के इर्द-गिर्द घूम रहा है. यानी किस पार्टी ने पिछले चुनाव में कितनी सीटों पर लड़ा, और कितनी सीटें जीतकर आई. पटना में आज महागठबंधन के दलों की अहम बैठक हो रही है, जहां सीट बंटवारे को लेकर अंतिम सहमति बनने की संभावना है. राजद, कांग्रेस, लेफ्ट, मुकेश सहनी की वीआईपी पार्टी और पशुपति पारस के नेतृत्व वाली पार्टी बैठक में हिस्सा ले रही हैं. इस बैठक में सीएम के नाम का भी ऐलान भी संभव है. चर्चा है कि राजद तेजस्वी यादव के नाम का ऐलान जल्द से जल्द चाहती है. 

2020 के विधानसभा चुनाव में महागठबंधन में सीटों का बंटवारा अलग समीकरणों पर हुआ था, लेकिन इस बार INDIA गठबंधन की छाया और जातीय गणित ने समीकरणों को और पेचीदा बना दिया है. राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि हाल ही में गांधी मैदान में बड़ी रैली करने वाले एसपी गुप्ता को भी महागठबंधन अपने साथ ला सकता है. इसके अलावा झारखंड मुक्ति मोर्चा के लिए भी सीमावर्ती इलाकों में सीटें छोड़ी जा सकती हैं. ऐसे में आज की बैठक केवल सीटों की संख्या तय नहीं करेगी, बल्कि 2025 के राजनीतिक समीकरणों की दिशा भी तय करेगी.

2020 की क्या थी तस्वीर

2020 के विधानसभा चुनाव में राजद ने सबसे ज़्यादा सीटों पर चुनाव लड़ा था कांग्रेस को 70 सीटें मिली थीं, जबकि वाम दलों को कुल 29 सीटें दी गई थीं. तब राजद की अगुवाई में महागठबंधन ने कुल 243 सीटों में से 110 सीटों पर जीत दर्ज की थी. हालांकि कांग्रेस का प्रदर्शन काफी कमजोर रहा था. उसे मिली 70 में से महज 19 सीटों पर ही जीत मिल पाई थी, यानी स्ट्राइक रेट करीब 27% का रहा. इसके उलट वाम दलों ने 29 में से 16 सीटें जीतकर 55% का स्ट्राइक रेट दिखाया था.

इन्हीं आंकड़ों के आधार पर इस बार सीट बंटवारे में स्ट्राइक रेट को प्रमुख मानदंड बनाया जा रहा है. महागठबंधन के सूत्रों की मानें, तो इस बार कांग्रेस को कम सीटें मिलने की पूरी संभावना है, जबकि लेफ्ट को पिछली बार से ज्यादा हिस्सेदारी दी जा सकती है.

2024 के लोकसभा चुनावों में INDIA गठबंधन के अस्तित्व ने बिहार की राजनीति को नई दिशा दी है. अब सीट बंटवारे में केवल बिहार स्तर की राजनीति ही नहीं, राष्ट्रीय स्तर के संकेत भी भूमिका निभा रहे हैं. सूत्रों का कहना है कि राष्ट्रीय नेतृत्व की ओर से भी सलाह दी गई है कि “विजेता को प्राथमिकता” की नीति अपनाई जाए. यही कारण है कि राजद जहां अपने परंपरागत क्षेत्रों में ज्यादा सीटें चाहता है, वहीं वामदल और छोटे सहयोगी दल इस बार बराबरी की मांग कर रहे हैं.

जातीय संतुलन और क्षेत्रीय समीकरण बिहार में सबसे अहम

बिहार की राजनीति में जातीय संतुलन हमेशा से सीट बंटवारे का आधार रहा है. इस बार भी यादव, कुशवाहा, दलित, महादलित, सवर्ण और मुस्लिम वोट बैंक को ध्यान में रखते हुए सीटों का वितरण किया जाएगा. कांग्रेस जहां मुस्लिम, दलित और सवर्ण मतदाताओं के बीच अपनी पकड़ मजबूत करने की रणनीति पर काम कर रही है, वहीं मुकेश सहनी निषाद समुदाय को साधने की कोशिश में हैं.

महागठबंधन की रणनीति में यह भी है कि झारखंड की सीमावर्ती जिलों जैसे  जमुई आदि में झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के लिए कुछ सीटें छोड़ी जाएं, ताकि झारखंड से लगे क्षेत्रों में पार्टी की पकड़ मजबूत की जा सके.

पारस और सहनी को कितनी सीटें मिलेगी?

पशुपति पारस और मुकेश सहनी की पार्टियों की स्थिति इस बार निर्णायक हो सकती है. सहनी की वीआईपी पार्टी ने 2020 में एनडीए के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था, लेकिन इस बार वे महागठबंधन में हैं. वहीं पशुपति पारस जो अब चिराग पासवान से अलग हो चुके हैं, अपनी नई पहचान बना रहे हैं. ये दोनों नेता अपनी जातियों के प्रभावी वोट बैंक के दम पर 10-15 सीटों की मांग कर सकते हैं. हालांकि महागठबंधन में उनके प्रदर्शन को लेकर आशंका भी है, इसलिए उन्हें सीमित संख्या में सीटें मिलने की संभावना जताई जा रही है. हालांकि सहनी ने 60 सीटों की मांग रखी है साथ ही वो उपमुख्यमंत्री का पद भी चाहते हैं.

राजद के रणनीतिकार तेजस्वी यादव खुद इस बैठक की अगुवाई कर रहे हैं. लेफ्ट पार्टियों में सीपीआई, सीपीएम और माले के प्रतिनिधि अपने पुराने प्रदर्शन को आधार बनाकर ज्यादा सीटों की मांग कर रहे हैं.

सूत्रों के अनुसार, राजद लगभग 135 सीटों की मांग कर रही है, जबकि कांग्रेस को 45 से 50 सीटों पर सीमित किया जा सकता है. हालांकि कांग्रेस के सूत्रों का कहना है कि पार्टी 70 सीटों से कम पर समझौता नहीं करेगी. लेफ्ट पार्टियां पिछले लोकसभा और विधानसभा चुनाव के प्रदर्शन के आधार पर अधिक से अधिक सीटों की मांग कर रही है. 

एसपी गुप्ता के भी हो रहे हैं चर्चे

गांधी मैदान में हाल ही में हुई भीड़भाड़ वाली रैली ने एसपी गुप्ता को चर्चा में ला दिया है. बताया जा रहा है कि महागठबंधन अब उन्हें भी अपनी टीम में शामिल करने पर विचार कर सकता है. एसपी गुप्ता की छवि एक तेजतर्रार युवा नेता की है और वे खासतौर पर युवाओं में लोकप्रिय हैं. अगर उन्हें महागठबंधन का हिस्सा बनाया जाता है, तो कुछ सीटें उनके लिए भी छोड़ी जा सकती हैं. उनके साथ भी  एक जातिगत आधार है जो पहली बार अपनी अलग पहचान के साथ हिस्सेदारी की मांग कर रहा है. 

क्या बैठक के बाद होगा औपचारिक एलान

आज की बैठक के बाद संभवतः एक संयुक्त प्रेस कांफ्रेंस में महागठबंधन सीट बंटवारे को लेकर अपनी औपचारिक घोषणा कर सकता है. हालांकि अंतिम समझौते से पहले कुछ और दौर की वार्ताएं भी हो सकती हैं.

बिहार में इस बार विधानसभा चुनाव महज एक राजनीतिक प्रतियोगिता नहीं बल्कि गठबंधन की समझ, संतुलन और रणनीतिक सूझबूझ का इम्तिहान बनने जा रहा है. स्ट्राइक रेट के आधार पर सीट बंटवारा न केवल महागठबंधन के अंदर संतुलन बनाएगा, बल्कि यह भी तय करेगा कि कौन सा दल आगामी चुनाव में कितनी ताकत के साथ मैदान में उतरता है. आज की बैठक इस दिशा में पहला और सबसे महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकती है.

 

2020 के विधानसभा चुनाव में महागठबंधन में सीटों का बंटवारा अलग समीकरणों पर हुआ था, लेकिन इस बार INDIA गठबंधन की छाया और जातीय गणित ने समीकरणों को और पेचीदा बना दिया है.

बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव की सरगर्मी तेज हो गई है और महागठबंधन की सियासी बिसात एक बार फिर से सजने लगी है. इस बार पूरा खेल ‘स्ट्राइक रेट' के इर्द-गिर्द घूम रहा है. यानी किस पार्टी ने पिछले चुनाव में कितनी सीटों पर लड़ा, और कितनी सीटें जीतकर आई. पटना में आज महागठबंधन के दलों की अहम बैठक हो रही है, जहां सीट बंटवारे को लेकर अंतिम सहमति बनने की संभावना है. राजद, कांग्रेस, लेफ्ट, मुकेश सहनी की वीआईपी पार्टी और पशुपति पारस के नेतृत्व वाली पार्टी बैठक में हिस्सा ले रही हैं. इस बैठक में सीएम के नाम का भी ऐलान भी संभव है. चर्चा है कि राजद तेजस्वी यादव के नाम का ऐलान जल्द से जल्द चाहती है. 

2020 के विधानसभा चुनाव में महागठबंधन में सीटों का बंटवारा अलग समीकरणों पर हुआ था, लेकिन इस बार INDIA गठबंधन की छाया और जातीय गणित ने समीकरणों को और पेचीदा बना दिया है. राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि हाल ही में गांधी मैदान में बड़ी रैली करने वाले एसपी गुप्ता को भी महागठबंधन अपने साथ ला सकता है. इसके अलावा झारखंड मुक्ति मोर्चा के लिए भी सीमावर्ती इलाकों में सीटें छोड़ी जा सकती हैं. ऐसे में आज की बैठक केवल सीटों की संख्या तय नहीं करेगी, बल्कि 2025 के राजनीतिक समीकरणों की दिशा भी तय करेगी.

2020 की क्या थी तस्वीर

2020 के विधानसभा चुनाव में राजद ने सबसे ज़्यादा सीटों पर चुनाव लड़ा था कांग्रेस को 70 सीटें मिली थीं, जबकि वाम दलों को कुल 29 सीटें दी गई थीं. तब राजद की अगुवाई में महागठबंधन ने कुल 243 सीटों में से 110 सीटों पर जीत दर्ज की थी. हालांकि कांग्रेस का प्रदर्शन काफी कमजोर रहा था. उसे मिली 70 में से महज 19 सीटों पर ही जीत मिल पाई थी, यानी स्ट्राइक रेट करीब 27% का रहा. इसके उलट वाम दलों ने 29 में से 16 सीटें जीतकर 55% का स्ट्राइक रेट दिखाया था.

इन्हीं आंकड़ों के आधार पर इस बार सीट बंटवारे में स्ट्राइक रेट को प्रमुख मानदंड बनाया जा रहा है. महागठबंधन के सूत्रों की मानें, तो इस बार कांग्रेस को कम सीटें मिलने की पूरी संभावना है, जबकि लेफ्ट को पिछली बार से ज्यादा हिस्सेदारी दी जा सकती है.

2024 के लोकसभा चुनावों में INDIA गठबंधन के अस्तित्व ने बिहार की राजनीति को नई दिशा दी है. अब सीट बंटवारे में केवल बिहार स्तर की राजनीति ही नहीं, राष्ट्रीय स्तर के संकेत भी भूमिका निभा रहे हैं. सूत्रों का कहना है कि राष्ट्रीय नेतृत्व की ओर से भी सलाह दी गई है कि “विजेता को प्राथमिकता” की नीति अपनाई जाए. यही कारण है कि राजद जहां अपने परंपरागत क्षेत्रों में ज्यादा सीटें चाहता है, वहीं वामदल और छोटे सहयोगी दल इस बार बराबरी की मांग कर रहे हैं.

जातीय संतुलन और क्षेत्रीय समीकरण बिहार में सबसे अहम

बिहार की राजनीति में जातीय संतुलन हमेशा से सीट बंटवारे का आधार रहा है. इस बार भी यादव, कुशवाहा, दलित, महादलित, सवर्ण और मुस्लिम वोट बैंक को ध्यान में रखते हुए सीटों का वितरण किया जाएगा. कांग्रेस जहां मुस्लिम, दलित और सवर्ण मतदाताओं के बीच अपनी पकड़ मजबूत करने की रणनीति पर काम कर रही है, वहीं मुकेश सहनी निषाद समुदाय को साधने की कोशिश में हैं.

महागठबंधन की रणनीति में यह भी है कि झारखंड की सीमावर्ती जिलों जैसे  जमुई आदि में झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के लिए कुछ सीटें छोड़ी जाएं, ताकि झारखंड से लगे क्षेत्रों में पार्टी की पकड़ मजबूत की जा सके.

पारस और सहनी को कितनी सीटें मिलेगी?

पशुपति पारस और मुकेश सहनी की पार्टियों की स्थिति इस बार निर्णायक हो सकती है. सहनी की वीआईपी पार्टी ने 2020 में एनडीए के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था, लेकिन इस बार वे महागठबंधन में हैं. वहीं पशुपति पारस जो अब चिराग पासवान से अलग हो चुके हैं, अपनी नई पहचान बना रहे हैं. ये दोनों नेता अपनी जातियों के प्रभावी वोट बैंक के दम पर 10-15 सीटों की मांग कर सकते हैं. हालांकि महागठबंधन में उनके प्रदर्शन को लेकर आशंका भी है, इसलिए उन्हें सीमित संख्या में सीटें मिलने की संभावना जताई जा रही है. हालांकि सहनी ने 60 सीटों की मांग रखी है साथ ही वो उपमुख्यमंत्री का पद भी चाहते हैं.

राजद के रणनीतिकार तेजस्वी यादव खुद इस बैठक की अगुवाई कर रहे हैं. लेफ्ट पार्टियों में सीपीआई, सीपीएम और माले के प्रतिनिधि अपने पुराने प्रदर्शन को आधार बनाकर ज्यादा सीटों की मांग कर रहे हैं.

सूत्रों के अनुसार, राजद लगभग 135 सीटों की मांग कर रही है, जबकि कांग्रेस को 45 से 50 सीटों पर सीमित किया जा सकता है. हालांकि कांग्रेस के सूत्रों का कहना है कि पार्टी 70 सीटों से कम पर समझौता नहीं करेगी. लेफ्ट पार्टियां पिछले लोकसभा और विधानसभा चुनाव के प्रदर्शन के आधार पर अधिक से अधिक सीटों की मांग कर रही है. 

एसपी गुप्ता के भी हो रहे हैं चर्चे

गांधी मैदान में हाल ही में हुई भीड़भाड़ वाली रैली ने एसपी गुप्ता को चर्चा में ला दिया है. बताया जा रहा है कि महागठबंधन अब उन्हें भी अपनी टीम में शामिल करने पर विचार कर सकता है. एसपी गुप्ता की छवि एक तेजतर्रार युवा नेता की है और वे खासतौर पर युवाओं में लोकप्रिय हैं. अगर उन्हें महागठबंधन का हिस्सा बनाया जाता है, तो कुछ सीटें उनके लिए भी छोड़ी जा सकती हैं. उनके साथ भी  एक जातिगत आधार है जो पहली बार अपनी अलग पहचान के साथ हिस्सेदारी की मांग कर रहा है. 

क्या बैठक के बाद होगा औपचारिक एलान

आज की बैठक के बाद संभवतः एक संयुक्त प्रेस कांफ्रेंस में महागठबंधन सीट बंटवारे को लेकर अपनी औपचारिक घोषणा कर सकता है. हालांकि अंतिम समझौते से पहले कुछ और दौर की वार्ताएं भी हो सकती हैं.

बिहार में इस बार विधानसभा चुनाव महज एक राजनीतिक प्रतियोगिता नहीं बल्कि गठबंधन की समझ, संतुलन और रणनीतिक सूझबूझ का इम्तिहान बनने जा रहा है. स्ट्राइक रेट के आधार पर सीट बंटवारा न केवल महागठबंधन के अंदर संतुलन बनाएगा, बल्कि यह भी तय करेगा कि कौन सा दल आगामी चुनाव में कितनी ताकत के साथ मैदान में उतरता है. आज की बैठक इस दिशा में पहला और सबसे महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकती है.

महागठबंधन की बैठक: स्ट्राइक रेट में है पूरा गेम, कांग्रेस, राजद, लेफ्ट, पारस, सहनी किसके खाते में होगी कितनी सीटें?
महागठबंधन की बैठक: स्ट्राइक रेट में है पूरा गेम, कांग्रेस, राजद, लेफ्ट, पारस, सहनी किसके खाते में होगी कितनी सीटें?
Edited By: [email protected]

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