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ISRO अंतरिक्ष में झंडा गाड़ने को तैयार, स्पेस एजेंसियों के साथ मिलकर Axiom-4 पर करेगा ये 7 एक्सपेरिमेंट
ISRO अंतरिक्ष में झंडा गाड़ने को तैयार, स्पेस एजेंसियों के साथ मिलकर Axiom-4 पर करेगा ये 7 एक्सपेरिमेंट

Axiom-4 एक प्राइवेट कमर्शियल स्पेस फ्लाइट है जिसके मिशन के लिए भारत 60-70 मिलियन डॉलर का भुगतान कर रहा है. इस मिशन पर एक भारतीय अंतरिक्षयात्री भी जा रहे हैं और उनका नाम है शुभांशु शुक्ला.
भारतीय वैज्ञानिकों ने NASA और यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ESA) के ग्लोबल एक्सपर्स्ट्स के साथ मिलकर इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (ISS) पर 7 खास एक्सपेरिमेंट का नेतृत्व करने के लिए हाथ मिलाया है. यह पार्टनरशिप ISS पर जा रहे Axiom-4 मिशन पर पूरा किया जाएगा. Axiom-4 एक प्राइवेट कमर्शियल स्पेस फ्लाइट है जिसके मिशन के लिए भारत 60-70 मिलियन डॉलर का भुगतान कर रहा है. यह मिशन इस साल मई के बाद ही जाएगा. इस मिशन पर एक भारतीय शख्स भी जा रहे हैं और उनका नाम है शुभांशु शुक्ला.
इससे पहले, जब भी भारत ने ग्लोबल स्पेस एजेंसियों के साथ पार्टनरशिप किया है, चौंकाने वाले और शानदार नतीजे सामने आए हैं. सबसे अच्छा उदाहरण 2008 में चंद्रयान-1 के माध्यम से चंद्रमा पर भारत की पहली यात्रा है. इस मिशन के दौरान, यह पता चला कि चंद्रमा की सतह सूखी नहीं है और उसमें पानी के अणु (मॉलेक्यूल) मौजूद हैं. यह नतीजा NASA के बनाए एक उपकरण के माध्यम से आया और भारत ने इसे चंद्रमा पर बिना कोई पैसे लिए भेजा था. नासा-इसरो के इस पार्टनरशिप ने चंद्र भूविज्ञान (लूनर जियोलॉजी) के इतिहास को फिर से लिखा और चंद्रमा पर स्थायी रूप से इंसानों को रहने की संभावना को पर दिए.
भारत के पास अंतरिक्ष में जीव विज्ञान यानी बायोलॉजी से जुड़े एक्सपेरिमेंट करने का अनुभव सीमित है.
इस साल की शुरुआत में ही भारत की अपनी मिनी अंतरिक्ष प्रयोगशाला (स्पेस लैब) में बायोलॉजी के पहले एक्सपेरिमेंट किए गए. इनमें अंतरिक्ष में लोबिया के बीज उगाना, पालक कोशिकाओं और बैक्टीरिया को विकसित करना शामिल था. इसलिए, ऐसा लगता है कि इसरो ने उन ग्लोबल एजेंसियों का साथ लेने का विकल्प चुना है जिन्होंने अंतरिक्ष के माइक्रो-ग्रैविटी में बड़े पैमाने पर एक्सपेरिमेंट किए हैं.
ISS पर पिछले 25 सालों से लगातार मनुष्यों का आना-जाना लगा हुआ है. 21वीं सदी में इस स्पेस लैबोरेट्री को अंतरिक्ष में मानवता की चौकी (ह्यूमैनिटी आउटपोस्ट) के रूप में देखा जा रहा है. यह उड़ता हुआ आउटपोस्ट हरदिन 16 सूर्यास्त और सूर्योदय देखता है, और कुछ बहुत ही कठोर वैज्ञानिक एक्सपेरिमेंट का घर रहा है, गवाह रहा है. भारत कभी भी ISS का हिस्सा नहीं था और इसलिए यह पहली बार होगा जब कोई भारतीय ISS तक पहुंचेगा.
प्राइवेट स्पेस कंपनी Axiom Space ने एक बयान में कहा, "ISRO नासा और यूरोपीयन स्पेस के सहयोग से Axiom Mission 4 (Ax-4) पर परिवर्तनकारी रिसर्च का नेतृत्व कर रहा है. वैज्ञानिक रूप से, यह स्टडी माइक्रोग्रैविटी में जैविक प्रक्रियाओं को समझने में योगदान देगी, जिससे लाइफ साइंस में विकास होगा."
इसमें कहा गया है, "तकनीकी रूप से, लंबी अवधि के अंतरिक्ष अभियानों के लिए रिसोर्स विकसित करने से स्पेस एक्सप्लोरेशन में भारत की क्षमता बढ़ेगी, जिससे देश अत्याधुनिक स्पेस टेक्नोलॉजी में अग्रणी बन जाएगा. स्टडी भारतीय वैज्ञानिकों और इंजीनियरों की अगली पीढ़ी को प्रेरित करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे. साथ ही वैश्विक वैज्ञानिक प्रगति के लिए भारत की प्रतिबद्धता और अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष समुदाय में इसकी प्रभावशाली उपस्थिति को मजबूत करेंगे."
यहां हैं वो एक्सपेरिमेंट जो Axiom-4 मिशन पर किए जाएंगे:
मानव अनुसंधान: माइक्रोग्रैविटी में इलेक्ट्रॉनिक डिस्प्ले के साथ इंटरेक्शन
Axiom-4 पर एक एक्सपेरिमेंट इस बात पर केंद्रित है कि अंतरिक्ष यात्री माइक्रोग्रैविटी में इलेक्ट्रॉनिक डिस्प्ले के साथ कैसे बातचीत करते हैं. नासा और Voyager के साथ पार्टनरशिप में, इसरो का लक्ष्य अंतरिक्ष में कंप्यूटर स्क्रीन के उपयोग के भौतिक और संज्ञानात्मक (कॉग्निटिव) प्रभावों को समझना है. यह रिसर्च इस बात पर प्रकाश डालेगा कि माइक्रोग्रैविटी में इशारा करना, टकटकी लगाना और तेजी से आंखों की गति जैसे कार्य कैसे प्रभावित होते हैं, और ये परिवर्तन तनाव के स्तर को कैसे प्रभावित कर सकते हैं. इसके नतीजे भविष्य के स्पेस क्राफ्ट के कंप्यूटरों के डिजाइन और इंटरैक्शन की जानकारी दे सकते हैं, जिससे वे अंतरिक्ष यात्रियों के लिए अधिक यूजर-फ्रैंडली बन जाएंगे.
लाइफ साइंस: माइक्रो एल्गे और सायनोबैक्टीरिया की स्टडी
ISRO के पास लाइफ साइंस से जुड़े एक्सपेरिमेंट्स का एक मजबूत पोर्टफोलियो है. नासा और रेडवायर के सहयोग से, ISRO का "स्पेस माइक्रो एल्गे" प्रोजेक्ट खाए जाने लायक माइक्रोएल्गे के तीन उपभेदों (स्ट्रेन) के विकास, मेटाबॉलिज्म और जेनेटिक एक्टिविटी पर माइक्रोग्रैविटी के प्रभाव की जांच करेगा. ये छोटे जीव अपने समृद्ध प्रोटीन, लिपिड और बायोएक्टिव घटकों की बदौलत लंबी अवधि के अंतरिक्ष अभियानों के लिए एक स्थायी भोजन स्रोत बन सकते हैं.
ESA के साथ पार्टनरशिप में इसरो के वैज्ञानिक एक अन्य प्रोजेक्ट पर काम करेंगे जो प्रकाश संश्लेषण (फोटोसिंथेसिस) में सक्षम जलीय बैक्टीरिया, साइनोबैक्टीरिया की जांच करती है. साइनोबैक्टीरिया के दो उपभेदों की तुलना करके, इसरो का लक्ष्य माइक्रोग्रैविटी में उनकी वृद्धि दर, सेलुलर प्रतिक्रियाओं और जैव रासायनिक गतिविधि को समझना है. यह रिसर्च इन जीवाणुओं को स्पेसक्राफ्ट एनवायरनमेंटल कंट्रोल सिस्टम में एकीकृत करने, भविष्य के मिशनों के लिए जीवन समर्थन बढ़ाने का मार्ग प्रशस्त कर सकता है.
अंतरिक्ष में मांसपेशियों का पुनर्जनन और फसल की वृद्धि
नासा और बायोसर्व स्पेस टेक्नोलॉजीज के सहयोग से ISRO "Effect of Metabolic Supplement on Muscle Regeneration Under Microgravity" प्रोजेक्ट चलाएगा. यह एक्सपेरिमेंट स्पेस में मांसपेशियों की शिथिलता के लिए जिम्मेदार वजहों को उजागर करना चाहती है. यह एक्सपेरिमेंट लंबे मिशनों के दौरान अंतरिक्ष यात्रियों में मसल लॉस को रोकने में मदद कर सकता है. साथ ही इसके रिजल्ट का पृथ्वी पर मांसपेशियों से संबंधित बीमारियों के इलाज के लिए भी महत्वपूर्ण प्रभाव हो सकता है.
ISRO अंतरिक्ष में फसल उगाने की संभावनाएं भी तलाश रहा है. नासा और बायोसर्व स्पेस टेक्नोलॉजीज के सहयोग से "अंतरिक्ष में सलाद बीज अंकुरित करना" (Sprouting Salad Seeds in Space) नाम का एक्सपेरिमेंट किया जाएगा. यह माइक्रोग्रैविटी में फसल के बीजों के अंकुरण और विकास की जांच करता है. इस प्रोजेक्ट का लक्ष्य भविष्य के अंतरिक्षयात्रियों के लिए विश्वसनीय खाद्य स्रोत (फुड सोर्स) सुनिश्चित करना है.
टार्डिग्रेड्स: द अल्टीमेट सर्वाइवर्स
नासा और Voyager के साथ पार्टनरशिप में, इसरो टार्डिग्रेड्स के लचीलेपन का अध्ययन कर रहा है. Voyager छोटे जीव हैं जो चरम स्थितियों में जीवित रहने की क्षमता के लिए जाने जाते हैं. यह प्रयोग इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पर टार्डिग्रेड्स के रिवाइवल, उनके सर्वाइव करने और प्रजनन की जांच करेगा. यह स्पेस फ्लाइट और जमीन पर नियंत्रण आबादी के बीच जीन एक्सप्रेशन पैटर्न की तुलना करेगा. उनके लचीलेपन के मॉलिक्यूलर मैकेनिज्म को समझने से भविष्य में स्पेस एक्सप्लोरेशन में मदद मिल सकती है और पृथ्वी पर नवीन जैव प्रौद्योगिकी अनुप्रयोगों (बायोटेक के एप्लीकेशन) को बढ़ावा मिल सकता है.
भारत के लिए भविष्य का एक विजन
Axiom Space के अनुसार, Axiom-4 पर ISRO के रिसर्च अंतरिक्ष विज्ञान और प्रौद्योगिकी को आगे बढ़ाने के लिए भारत के समर्पण का एक सबूत है. इसमें कहा गया है कि ये एक्सपेरिमेंट न केवल महत्वपूर्ण वैज्ञानिक प्रगति का वादा करते हैं बल्कि अगली पीढ़ी के वैज्ञानिकों और इंजीनियरों को भी प्रेरित करेंगे.
जैसे-जैसे भारत अंतरिक्ष में अपनी उपस्थिति मजबूत कर रहा है, यह वैश्विक वैज्ञानिक प्रगति में योगदान देना जारी रख रहा है. इससे ऐसे भविष्य का मार्ग प्रशस्त हो रहा है जहां मानवता हमारी धरती से परे भी फल-फूल सकती है.
Axiom-4 मिशन से परे, भारत की पहले से ही 2026-2027 की समय सीमा में श्रीहरिकोटा से एक भारतीय को अंतरिक्ष में भेजने की योजना है. फिर 2035 तक उसका अपना 'भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन' या इंडियन स्पेस स्टेशन होगा. इसका लक्ष्य 2040 तक 'स्वदेशी' या भारतीय तकनीक का उपयोग करके एक भारतीय को चंद्रमा की सतह पर उतारना भी है. Axiom-4 मिशन उस लंबी राह में एक कदम है जिसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अंतरिक्ष में भारत के लिए तैयार किया है.
Axiom-4 एक प्राइवेट कमर्शियल स्पेस फ्लाइट है जिसके मिशन के लिए भारत 60-70 मिलियन डॉलर का भुगतान कर रहा है. इस मिशन पर एक भारतीय अंतरिक्षयात्री भी जा रहे हैं और उनका नाम है शुभांशु शुक्ला.
भारतीय वैज्ञानिकों ने NASA और यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ESA) के ग्लोबल एक्सपर्स्ट्स के साथ मिलकर इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (ISS) पर 7 खास एक्सपेरिमेंट का नेतृत्व करने के लिए हाथ मिलाया है. यह पार्टनरशिप ISS पर जा रहे Axiom-4 मिशन पर पूरा किया जाएगा. Axiom-4 एक प्राइवेट कमर्शियल स्पेस फ्लाइट है जिसके मिशन के लिए भारत 60-70 मिलियन डॉलर का भुगतान कर रहा है. यह मिशन इस साल मई के बाद ही जाएगा. इस मिशन पर एक भारतीय शख्स भी जा रहे हैं और उनका नाम है शुभांशु शुक्ला.
इससे पहले, जब भी भारत ने ग्लोबल स्पेस एजेंसियों के साथ पार्टनरशिप किया है, चौंकाने वाले और शानदार नतीजे सामने आए हैं. सबसे अच्छा उदाहरण 2008 में चंद्रयान-1 के माध्यम से चंद्रमा पर भारत की पहली यात्रा है. इस मिशन के दौरान, यह पता चला कि चंद्रमा की सतह सूखी नहीं है और उसमें पानी के अणु (मॉलेक्यूल) मौजूद हैं. यह नतीजा NASA के बनाए एक उपकरण के माध्यम से आया और भारत ने इसे चंद्रमा पर बिना कोई पैसे लिए भेजा था. नासा-इसरो के इस पार्टनरशिप ने चंद्र भूविज्ञान (लूनर जियोलॉजी) के इतिहास को फिर से लिखा और चंद्रमा पर स्थायी रूप से इंसानों को रहने की संभावना को पर दिए.
भारत के पास अंतरिक्ष में जीव विज्ञान यानी बायोलॉजी से जुड़े एक्सपेरिमेंट करने का अनुभव सीमित है.
इस साल की शुरुआत में ही भारत की अपनी मिनी अंतरिक्ष प्रयोगशाला (स्पेस लैब) में बायोलॉजी के पहले एक्सपेरिमेंट किए गए. इनमें अंतरिक्ष में लोबिया के बीज उगाना, पालक कोशिकाओं और बैक्टीरिया को विकसित करना शामिल था. इसलिए, ऐसा लगता है कि इसरो ने उन ग्लोबल एजेंसियों का साथ लेने का विकल्प चुना है जिन्होंने अंतरिक्ष के माइक्रो-ग्रैविटी में बड़े पैमाने पर एक्सपेरिमेंट किए हैं.
ISS पर पिछले 25 सालों से लगातार मनुष्यों का आना-जाना लगा हुआ है. 21वीं सदी में इस स्पेस लैबोरेट्री को अंतरिक्ष में मानवता की चौकी (ह्यूमैनिटी आउटपोस्ट) के रूप में देखा जा रहा है. यह उड़ता हुआ आउटपोस्ट हरदिन 16 सूर्यास्त और सूर्योदय देखता है, और कुछ बहुत ही कठोर वैज्ञानिक एक्सपेरिमेंट का घर रहा है, गवाह रहा है. भारत कभी भी ISS का हिस्सा नहीं था और इसलिए यह पहली बार होगा जब कोई भारतीय ISS तक पहुंचेगा.
प्राइवेट स्पेस कंपनी Axiom Space ने एक बयान में कहा, "ISRO नासा और यूरोपीयन स्पेस के सहयोग से Axiom Mission 4 (Ax-4) पर परिवर्तनकारी रिसर्च का नेतृत्व कर रहा है. वैज्ञानिक रूप से, यह स्टडी माइक्रोग्रैविटी में जैविक प्रक्रियाओं को समझने में योगदान देगी, जिससे लाइफ साइंस में विकास होगा."
इसमें कहा गया है, "तकनीकी रूप से, लंबी अवधि के अंतरिक्ष अभियानों के लिए रिसोर्स विकसित करने से स्पेस एक्सप्लोरेशन में भारत की क्षमता बढ़ेगी, जिससे देश अत्याधुनिक स्पेस टेक्नोलॉजी में अग्रणी बन जाएगा. स्टडी भारतीय वैज्ञानिकों और इंजीनियरों की अगली पीढ़ी को प्रेरित करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे. साथ ही वैश्विक वैज्ञानिक प्रगति के लिए भारत की प्रतिबद्धता और अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष समुदाय में इसकी प्रभावशाली उपस्थिति को मजबूत करेंगे."
यहां हैं वो एक्सपेरिमेंट जो Axiom-4 मिशन पर किए जाएंगे:
मानव अनुसंधान: माइक्रोग्रैविटी में इलेक्ट्रॉनिक डिस्प्ले के साथ इंटरेक्शन
Axiom-4 पर एक एक्सपेरिमेंट इस बात पर केंद्रित है कि अंतरिक्ष यात्री माइक्रोग्रैविटी में इलेक्ट्रॉनिक डिस्प्ले के साथ कैसे बातचीत करते हैं. नासा और Voyager के साथ पार्टनरशिप में, इसरो का लक्ष्य अंतरिक्ष में कंप्यूटर स्क्रीन के उपयोग के भौतिक और संज्ञानात्मक (कॉग्निटिव) प्रभावों को समझना है. यह रिसर्च इस बात पर प्रकाश डालेगा कि माइक्रोग्रैविटी में इशारा करना, टकटकी लगाना और तेजी से आंखों की गति जैसे कार्य कैसे प्रभावित होते हैं, और ये परिवर्तन तनाव के स्तर को कैसे प्रभावित कर सकते हैं. इसके नतीजे भविष्य के स्पेस क्राफ्ट के कंप्यूटरों के डिजाइन और इंटरैक्शन की जानकारी दे सकते हैं, जिससे वे अंतरिक्ष यात्रियों के लिए अधिक यूजर-फ्रैंडली बन जाएंगे.
लाइफ साइंस: माइक्रो एल्गे और सायनोबैक्टीरिया की स्टडी
ISRO के पास लाइफ साइंस से जुड़े एक्सपेरिमेंट्स का एक मजबूत पोर्टफोलियो है. नासा और रेडवायर के सहयोग से, ISRO का "स्पेस माइक्रो एल्गे" प्रोजेक्ट खाए जाने लायक माइक्रोएल्गे के तीन उपभेदों (स्ट्रेन) के विकास, मेटाबॉलिज्म और जेनेटिक एक्टिविटी पर माइक्रोग्रैविटी के प्रभाव की जांच करेगा. ये छोटे जीव अपने समृद्ध प्रोटीन, लिपिड और बायोएक्टिव घटकों की बदौलत लंबी अवधि के अंतरिक्ष अभियानों के लिए एक स्थायी भोजन स्रोत बन सकते हैं.
ESA के साथ पार्टनरशिप में इसरो के वैज्ञानिक एक अन्य प्रोजेक्ट पर काम करेंगे जो प्रकाश संश्लेषण (फोटोसिंथेसिस) में सक्षम जलीय बैक्टीरिया, साइनोबैक्टीरिया की जांच करती है. साइनोबैक्टीरिया के दो उपभेदों की तुलना करके, इसरो का लक्ष्य माइक्रोग्रैविटी में उनकी वृद्धि दर, सेलुलर प्रतिक्रियाओं और जैव रासायनिक गतिविधि को समझना है. यह रिसर्च इन जीवाणुओं को स्पेसक्राफ्ट एनवायरनमेंटल कंट्रोल सिस्टम में एकीकृत करने, भविष्य के मिशनों के लिए जीवन समर्थन बढ़ाने का मार्ग प्रशस्त कर सकता है.
अंतरिक्ष में मांसपेशियों का पुनर्जनन और फसल की वृद्धि
नासा और बायोसर्व स्पेस टेक्नोलॉजीज के सहयोग से ISRO "Effect of Metabolic Supplement on Muscle Regeneration Under Microgravity" प्रोजेक्ट चलाएगा. यह एक्सपेरिमेंट स्पेस में मांसपेशियों की शिथिलता के लिए जिम्मेदार वजहों को उजागर करना चाहती है. यह एक्सपेरिमेंट लंबे मिशनों के दौरान अंतरिक्ष यात्रियों में मसल लॉस को रोकने में मदद कर सकता है. साथ ही इसके रिजल्ट का पृथ्वी पर मांसपेशियों से संबंधित बीमारियों के इलाज के लिए भी महत्वपूर्ण प्रभाव हो सकता है.
ISRO अंतरिक्ष में फसल उगाने की संभावनाएं भी तलाश रहा है. नासा और बायोसर्व स्पेस टेक्नोलॉजीज के सहयोग से "अंतरिक्ष में सलाद बीज अंकुरित करना" (Sprouting Salad Seeds in Space) नाम का एक्सपेरिमेंट किया जाएगा. यह माइक्रोग्रैविटी में फसल के बीजों के अंकुरण और विकास की जांच करता है. इस प्रोजेक्ट का लक्ष्य भविष्य के अंतरिक्षयात्रियों के लिए विश्वसनीय खाद्य स्रोत (फुड सोर्स) सुनिश्चित करना है.
टार्डिग्रेड्स: द अल्टीमेट सर्वाइवर्स
नासा और Voyager के साथ पार्टनरशिप में, इसरो टार्डिग्रेड्स के लचीलेपन का अध्ययन कर रहा है. Voyager छोटे जीव हैं जो चरम स्थितियों में जीवित रहने की क्षमता के लिए जाने जाते हैं. यह प्रयोग इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पर टार्डिग्रेड्स के रिवाइवल, उनके सर्वाइव करने और प्रजनन की जांच करेगा. यह स्पेस फ्लाइट और जमीन पर नियंत्रण आबादी के बीच जीन एक्सप्रेशन पैटर्न की तुलना करेगा. उनके लचीलेपन के मॉलिक्यूलर मैकेनिज्म को समझने से भविष्य में स्पेस एक्सप्लोरेशन में मदद मिल सकती है और पृथ्वी पर नवीन जैव प्रौद्योगिकी अनुप्रयोगों (बायोटेक के एप्लीकेशन) को बढ़ावा मिल सकता है.
भारत के लिए भविष्य का एक विजन
Axiom Space के अनुसार, Axiom-4 पर ISRO के रिसर्च अंतरिक्ष विज्ञान और प्रौद्योगिकी को आगे बढ़ाने के लिए भारत के समर्पण का एक सबूत है. इसमें कहा गया है कि ये एक्सपेरिमेंट न केवल महत्वपूर्ण वैज्ञानिक प्रगति का वादा करते हैं बल्कि अगली पीढ़ी के वैज्ञानिकों और इंजीनियरों को भी प्रेरित करेंगे.
जैसे-जैसे भारत अंतरिक्ष में अपनी उपस्थिति मजबूत कर रहा है, यह वैश्विक वैज्ञानिक प्रगति में योगदान देना जारी रख रहा है. इससे ऐसे भविष्य का मार्ग प्रशस्त हो रहा है जहां मानवता हमारी धरती से परे भी फल-फूल सकती है.
Axiom-4 मिशन से परे, भारत की पहले से ही 2026-2027 की समय सीमा में श्रीहरिकोटा से एक भारतीय को अंतरिक्ष में भेजने की योजना है. फिर 2035 तक उसका अपना 'भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन' या इंडियन स्पेस स्टेशन होगा. इसका लक्ष्य 2040 तक 'स्वदेशी' या भारतीय तकनीक का उपयोग करके एक भारतीय को चंद्रमा की सतह पर उतारना भी है. Axiom-4 मिशन उस लंबी राह में एक कदम है जिसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अंतरिक्ष में भारत के लिए तैयार किया है.
